Mar 30, 2024, 09:48 AM IST

माता सीता के वरदान से आज भी अमर है यह पेड़

Smita Mugdha

मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्री राम, लक्ष्मण और सीता के साथ गया में श्राद्धकर्म के लिए आए थे. 

गया में जब राजा दशरथ प्रकट हुए तब सीता अकेले थीं. दशरथ ने सीता को पिंडदान करने का निर्देश दिया था. 

माता सीता ने फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी मानकर पिंडदान कर दिया था. 

जब भगवान राम आए तो  गाय, पंडित और फल्गु नदी दशरथ के निर्देश वाली बात से मुकर गए थे. 

इसके बाद श्रीराम और लक्ष्मण माता सीता के पिंडदान करने पर नाराज हो गए और उन्हें कटु वचन कहे थे. 

तब बरगद के पेड़ ने सीता माता के पक्ष में गवाही दी थी, जिससे खुश होकर उन्होंने उसे अक्षयवट बनने का वरदान दिया. 

पंडित, गाय, केतकी के फूल और फल्गु नदी को माता सीता ने शाप दिया था, जिसका फल आज तक नजर आता है.

अक्षयवट के बारे में कहा जाता है कि इसे खुद भगवान ब्रह्मा ने स्वर्ग से लाकर रोपा था और हजारों साल बाद भी यह खड़ा है.

सीता माता के आशीर्वाद की वजह से ही वट सावित्री के दिन वट वृक्ष की पूजा सुहागिन स्त्रियां करती हैं.