राम को नाव पर क्यों नहीं चढ़ाना चाह रहा था केवट, किस वजह से धुले थे पैर
Abhishek Shukla
भगवान राम जब वनवास पर जा रहे थे, उनके सामने सरयू नदी पार करने की चुनौती थी.
रामायण के मुताबिक राम ने केवट से कहा कि भाई, नदी पार करा दो.
केवट ने इनकार कर दिया, उसने कहा प्रभु आपके पैर को बिना धुले हम नाव में बैठने नहीं दे सकते हैं.
आपके चरण जहां पड़ते है, वहां वर्षों से पड़ी शिला भी स्त्री बन जाती है.
गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं केवट ने कहा, 'छुअत सिला भइ नारि सुहाई, पाहन तें न काठ कठिनाई. तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई, बाट परइ मोरि नाव उड़ाई, एहिं प्रतिपालउं सबु परिवारू, नहिं जानउं कछु अउर कबारू.'
केवट कहता है, 'जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू, मोहि पद पदुम पखारन कहहू.' केवट ने कहा कि प्रभु मेरी आजीविका का साधन यही नाव है, अगर ये स्त्री बन गई मुझे कोई और काम नहीं आता. मेरी रोजी रोटी नहीं चलेगी, मेरे परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा.
भगवान राम केवट की बात सुनकर हंस पड़े. गोस्वामी जी लिखते हैं, 'कृपासिंधु बोले मुसुकाई, सोइ करु जेहिं तव नाव न जाई, बेगि आनु जलपाय पखारू, होत बिलंबु उतारहि पारू.'
भगवान राम के चरण पड़ने की वजह से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या शिला हो गई थीं. भगवान राम के चरण पड़ने से वह फिर स्त्री हो पाईं. केवट को डर लगा कि उसकी नाव ही न कहीं स्त्री हो जाए.
केवट गरीब था ऐसे में वह एक और स्त्री का भार वह कैसे सह सकेगा.