श्रीरसागर में देवताओं और राक्षसों ने मिलकर अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया गया.
जब मंथन शुरू हुआ तो देत्य और देवता दोनों ही अमृत की तलाश में जुट गये. इसे पीने के लिए दोनों तरफ होड़ मच गई.
इस मंथन में सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे हलाहल कहा जाता है. इस विष के बाद 14 तरह के अद्भुत रत्न और अमृत छिपा था.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कालकूट विष यानी हलाहल को कहीं फेंका भी नहीं जा सकता था क्योंकि इससे पूरी सृष्टि का विनाश हो जाता.
इसी के चलते अब देवता और देत्य सोचने लगे कि यह विष कैसे हटाया जाये और अमृत को प्राप्त किया जाये.
जब देवता और दानवों को कोई उपाय नहीं आया तो वे महादेव के पास सहायता मांगने पहुंचे. सभी ने कहा कि मंथन से निकलने वाले विष का क्या करें.
इसी को देखते हुए महादेव मंथन से निकलने वाला सारा विष प्याले की तरह पी गये. इसी से उनका कंठ नीला पड़ गया. यह जहर नीचे न जाये पाये. इसके लिए माता पार्वती ने महादेव के कंठ पर हाथ रख लिया.
महादेव के कंठ पर माता पार्वती के हाथ लगाने से यह सारा जहर यही ठहर गया. इसी के बाद से महादेव को नीलकंठ कहा जाने लगा.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)