पिचकारी से होली खेलते थे ये मुगल बादशाह, देखिए AI PHOTOS
Kuldeep Panwar
मुगल बादशाहों ने हिंदू राजकुमारियों को अपनी बेगम बनाकर महज हिंदुओं से रिश्तेदारी ही नहीं जोड़ी थी बल्कि उनके त्योहारों को भी अपनाया था.
इतिहासकारों के मुताबिक, मुगल बादशाहों ने जहां अपने राज में दिवाली के दीयों का जमकर लुत्फ लिया था, वहीं होली के रंगों में वे खूब भीगे थे.
बांस की पिचकारी से होली की शुरुआत का श्रेय भी चौथे मुगल बादशाह जहांगीर को ही जाता है, जो दरबारियों के साथ जमकर होली खेलते थे.
इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब के मुताबिक, मुगल काल में होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता था, जिसमें बादशाह खुद भी शिरकत करते थे.
इतिहास में मुगल काल के दौरान जानवरों के सींग को खाली कर उसके अंदर रंग भरकर दूसरों पर गुब्बारे की तरह फेंकने का भी जिक्र मिलता है.
मुगलकाल में 'ईद-ए-गुलाबी' कहलाने वाली होली पर महलों में फूलों से रंग बनाकर बड़े-बड़े हौद भरे जाते थे, जिनमें गुलाबजल व केवड़ा डाला जाता था.
इतिहासकारों के मुताबिक, बाबर जब भारत पहुंचा तो हिंदुओं को होली के रंगों में रंगे देखकर हैरान रह गया. उसे ये त्योहार बेहद भा गया था.
अबुल फजल ने आईना-ए-अकबरी में मुगल बादशाह अकबर की होली का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा, होली के दिन दूर तक रंग फेंकने के तरीकों पर अकबर पूरा साल चर्चा करते थे.
अबुल फजल ने यह भी लिखा है कि अकबर आम जनता के बीच जाकर होली खेलते थे. उनकी और जोधाबाई की होली खेलते हुए पेंटिंग्स भी मिलती हैं.
तुज्क-ए-जहांगीरी में बादशाह जहांगीर के होली पर दरबारियों के साथ पिचकारी से रंग खेलने और गीत-संगीत की खास महफिलें आयोजित करने का जिक्र है.
आम जनता को लाल किले के झरोखे से होली खेलते हुए देखकर जहांगीर ने ही इस त्योहार को आब-ए-पाशी और ईद-ए-गुलाबी नाम दिए थे.
शाहजहां भी होली जमकर खेलते थे. हालांकि उनके बेटे औरंगजेब ने इस्लाम विरोधी बताते हुए मुस्लिमों के होली खेलने पर रोक लगा दी थी.
औरंगजेब के बाद बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के भी होली खेलने का जिक्र है, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को होती है.
कविता-शेर लिखने के शौकीन जफर ने होली को लाल किले का शाही उत्सव घोषित किया था और इसे लेकर उर्दू भाषा में बहुत सारे गीत लिखे थे.
होली पर गाया जाने वाला एक फाग गीत 'क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी,देखो कुंवरजी दूंगी मैं गारी' बहादुर शाह जफर का ही लिखा हुआ है.
1844 में उर्दू अखबार जाम-ए-जहांनुमा ने लिखा है कि लाल किले में टेसू के फूलों से बने रंगों से बादशाह बहादुर शाह जफर और बेगम आम लोगों के साथ होली खेलते थे.