भगवान श्रीराम अपनी जन्मभूमि अयोध्या में एक बार फिर विराजने वाले हैं. अयोध्या में श्रीराम मंदिर लगभग तैयार है, जिसमें जनवरी में प्रभु राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी.
भगवान राम के जन्म के बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं. साथ ही उनकी बाल लीलाओं से भी लोग वाकिफ हैं, लेकिन प्रभु राम पृथ्वीलोक से परलोक कब गए, इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.
मान्यताओं के अनुसार, प्रभु राम का जन्म ईसा से 5114 साल पूर्व माना जाता है. मानस रूप में धरती पर आए प्रभु राम की मृत्यु को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि उनकी मृत्यु नहीं हुई थी बल्कि वे सशरीर बैकुंठ धाम गए थे.
मान्यता है कि माता सीता ने वन में लव-कुश को जन्म दिया. इसके बाद उन्होंने लवकुश को प्रभु राम की गोद में सौंपा और स्वयं धरती मां की गोद में सशरीर समा गई थीं. सीता से यह विछोह प्रभु राम बर्दाश्त नहीं कर पाए थे.
सीता जी के जाने से व्यथित प्रभु राम ने यमराज की सहमति से सरयू नदी के तट पर गुप्तार घाट में जल समाधि ली थी. मान्यता है कि उनके समाधि लेने पर जल से चतुर्भुज विष्णु बाहर आए और सबको दर्शन देकर बैकुंठ धाम चले गए.
एक अन्य कथा है कि यमदेव संत रूप में श्रीराम से मिलने महल में गए. उन्होंने राम से एकांत में वार्ता की बात कही और कहा कि बातचीत के दौरान कोई आया तो द्वारपाल को मृत्युदंड देना होगा.
श्रीराम ने लक्ष्मण को द्वारपाल बनाया और यम से बात करने लगे. इसी दौरान दुर्वासा मुनि आए और लक्ष्मण से श्रीराम से मिलवाने को कहा. दुर्वासा ऋषि क्रोध में राम को श्राप ना दे दें, यह सोचकर लक्ष्मण ने उन्हें अंदर जाने दिया.
कहा जाता है कि यम को दिया वचन टूटने पर राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड ना देकर देश निकाला दे दिया, लेकिन लक्ष्मण ने बड़े भाई के वचन का मान रखने के लिए सरयू में जल समाधि ले ली.
लक्ष्मण की जल समाधि से व्यथित राम ने इसके लिए खुद को जिम्मेदार माना और खुद भी सभी लोगों की उपस्थिति में जल समाधि लेकर प्राण त्याग दिए.
कहते हैं कि नदी में प्रवेश करते ही राम दो भुज से चतुर्भुज विष्णु में बदल गए. उसी समय ब्रह्मा जी विमान लेकर आए और विष्णु स्वरूप राम को सशरीर बैठाकर वैकुंठ धाम चले गए.
वाल्मीकि रामायण में राम के मानव देह त्यागने का वर्णन है. संस्कृत श्लोक ‘दशवर्षसहस्राणि दशवर्षशतानि च, रामो राज्यमुपासित्वा ब्रह्मलोकं प्रयास्यति’ के हिसाब से राम 11 हजार साल राज्य करने के बाद वैकुंठ धाम गए थे.