Sri Lanka Crisis: भारत पर है GDP का 90 प्रतिशत कर्ज, क्या यहां भी बन सकते हैं श्रीलंका जैसे हालात

अभिषेक सांख्यायन | Updated:Jul 18, 2022, 04:35 PM IST

दुनिया की तमाम विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कर्ज लेकर संसाधनों का संचालन किया जाता है. अमेरिका, जापान का कर्ज उनकी जीडीपी से भी ज्यादा है. भारत की स्थिति कैसी है, इस पर नजर डालती एक रिपोर्ट...

डीएनए हिंदी: कर्ज लेकर देश का विकास करने के तरीके की पोल श्रीलंका (Sri Lanka) के आर्थिक संकट ने खोल दी है. श्रीलंका की दिवालिया हालत को देखकर सोशल मीडिया पर भारत में भी वहां जैसे हालात होने की आशंका जताई जा रही है. कहा जा रहा है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था फेल होने का असली कारण उसके ऊपर कर्ज के देश की कुल GDP से भी ज्यादा हो जाना रहा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, साल 2020 में भारत पर भी उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 90 फीसदी हिस्से के बराबर कर्ज हो गया था. आइए जानते हैं कि क्या सच में श्रीलंका की आर्थिक विफलता का कारण यही रहा है या माजरा कुछ और है. साथ ही क्या भारत की तुलनात्मक स्थिति इन देशों से कितनी बेहतर है? 

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विकसित देशों में कर्ज का GDP से ज्यादा होने आम बात

यदि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक आंकड़ों को देखा जाए तो विश्व की टॉप-3 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल जापान और अमेरिका के ऊपर Debt to GDP Ratio 100 प्रतिशत से भी ज्यादा है. उनके अलावा भी फ्रांस, स्पेन और कनाडा जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यही स्थिति है, लेकिन इन देशों के बारे में हमें किसी भी तरह के आर्थिक संकट की खबरें नहीं आती है. जापान का Debt to GDP Ratio तो 250 प्रतिशत से भई ज्यादा है. IMF के मुताबिक, भारत की स्थिति इस सूची में चीन (77.84 %) , पाकिस्तान (71.29 %), बांग्लादेश (42.6%) के Debt to GDP Ratio से बेहतर है. 

आइए जानते हैं कि क्या होता है Debt to GDP Ratio

किसी भी देश की आर्थिक मजबूती को जानने के लिए कई मानकों का प्रयोग किया जाता है. Debt to GDP Ratio इन्ही में से एक पैमाना है. Debt to GDP ratio को जानने के लिए देश पर कुल कर्ज को देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद से विभाजित किया जाता है. इससे अनुमान लगाया जाता है कि कोई देश अपने कर्जे चुका पाने की स्थिति  में कितना सक्षम है.  

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कितना होना चाहिए Debt to GDP Ratio? 

विश्व बैंक (World Bank) की रिसर्च के मुताबिक, किसी भी उभरती हुई अर्थव्यवस्था (Emerging Economies) के लिए आदर्श Debt to GDP ratio 64 प्रतिशत होना चाहिए. अगर ये अनुपात 10 प्रतिशत बढ़ता है तो GDP में 0.2 प्रतिशत की कमी आ जाती है.  

मगर साथ ही ये भी मानना है कि Debt to GDP Ratio ज्यादा भी चल सकता है, अगर आपकी आर्थिक वृद्धि तेज गति से हो रही हो. ऐसी स्थिति में अगले वित्त वर्ष में यही अनुपात आपको बेहतर होता दिखाई देगा. 

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श्रीलंका से कैसे अलग है भारत की स्थिति

किसी भी देश की वित्तीय ताकत को मापने का एक और पैमाना भी होता है, जिसे External Debt to GDP कहते हैं. इसका मतलब है कि किसी भी देश पर कर्ज का विदेशी हिस्सा कितना है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और श्रीलंका सेंट्रल बैंक के आंकड़ों से हम देख सकते हैं कि दोनो देशों External Debt to GDP में तीन गुना का अंतर है. भारत के ऊपर विदेशी कर्ज महज 19.6 प्रतिशत है, वहीं श्रीलंका का विदेशी कर्ज पिछले कई सालों से 60 प्रतिशत से ऊपर बना हुआ था.

फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व भी अहम मानक

इसके साथ एक और महत्वपूर्ण मानक होता है Ratio of Short-term Debt (original maturity) to Foreign Exchange Reserves. इसका मतलब है कि किसी भी देश के पास एक साल के भीतर चुकाया जाने वाला कर्ज और विदेशी मुद्रा भंडार का अनुपात क्या है. भारत का ये अनुपात 20 प्रतिशत है, वहीं श्रीलंका में ये अनुपात विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी से गिरावट के कारण बिगड़ता चला गया. इसके कारण ऋण चुकाने में असमर्थता देखने को मिली. उसके बाद जो किसी भी देश की साख गिरने के कारण स्थितियां और खराब होती गई.

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पहले से ही चेतावनी दे रहा था श्रीलंका का केंद्रीय बैंक

दरअसल श्रीलंका में कर्ज के हालात तो पहले से ही खराब थे. इस बारे में वहां के केन्द्रीय बैंक कई बार चेता चुका था. कोविड-19 महामारी के कारण पर्यटन के कारण आने वाली बड़ी विदेशी मुद्रा से भी हाथ धोना पड़ा. इसके अलावा कोविडकाल में हर देश में आर्थिक गतिविधिया मंद पड़ गई थी. सरकारों को जनता को राहत भी देनी पड़ी. इन सबके ऊपर श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में गति लाने के लिए टैक्स में भारी छूट दी गई, जिससे सरकार के टैक्स कलेक्शन में भी कमी आई. कुल मिलाकर एक के बाद एक कदम उल्टा पड़ता गया और नतीजा हम सबके सामने है.

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