Abortion Rights को लेकर अमेरिका में क्यों खड़ा हुआ है विवाद? क्या है Roe vs Wade का पूरा मामला?

अणु शक्ति सिंह | Updated:May 06, 2022, 05:09 PM IST

माना जाता है कि एबॉर्शन का अधिकार अमेरिका के सबसे संवेदनशील मुद्दों में एक है.

डीएनए हिंदी : अमेरिका में एबॉर्शन के मसले ने अभी बेहद ज़ोर पकड़ रखा है. दरअसल कुछ दिनों पहले पॉलिटीको नामक अख़बार ने सुप्रीम कोर्ट के आगामी फ़ैसले का एक ड्राफ्ट लीक कर दिया था. इस फैसले में यह दर्ज था कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट  आने वाले दिनों में अमेरिका महिलाओं का एबॉर्शन या गर्भसमापन का अधिकार छीन सकती है. गौरतलब है कि अमेरिका में एबॉर्शन का अधिकार बड़ा मसला है. 1973 में  Roe vs. Wade मामले में ऐतिहासिक फैसला देते हुए कोर्ट ने गर्भसमापन या एबॉर्शन को कानूनी घोषित किया था हालांकि इसका इसकी सीमा सभी स्टेट में अलग-अलग हो सकती थी. माना जाता है कि एबॉर्शन का अधिकार अमेरिका के सबसे संवेदनशील मुद्दों में एक है. यह वह मुद्दा है जो अमेरिकी कट्टरपंथियों और उदारवादियों के बीच विभाजनकारी रेखा भी खींचता है. 

रो बनाम वेड क्या कानून है?
साल 1973 में अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने गर्भसमापन पर अपना एक ऐतिहासिक फैसला दिया था जिसे रो बनाम वेड का नाम दिया गया. यह पूरा मसला  के नाम से जाना जाता है। अमेरिका के टेक्सिस में रहने वाली लड़की नॉर्मा मैककॉर्वी की छोटी उम्र में ही शादी हो गई और 16 साल की उम्र में वो पहली एक अमेरिकन लड़की जेन रो और टेक्सास शहर के तत्कालीन अटार्नी हेनरी वेड के मध्य उत्पन्न हुए विवाद पर है. जेन रो पहली बार मां 16 साल की उम्र में बनीं. वह उस वक़्त बच्चा पालने लायक स्थिति में नहीं थीं. उन्होंने अपना बच्चा अपनी मां की कस्टडी में छोड़ दिया. रो दूसरी बार मां बीस साल की उम्र में बनीं. वे उस वक़्त भी पालन के लिए तैयार नहीं थीं. दो साला के बाद जब वे तीसरी बार मां बनने वाली थीं तब उन्होंने एबॉर्शन की अनुमति चाही, चूंकि उस वक़्त टेक्सास में एबॉर्शन केवल उन स्त्रियों के लिए मान्य था जिन्हें जान का खतरा था, रो को टेक्सास के अटार्नी हेनरी वेड द्वारा  गर्भसमापन की अनुमति नहीं मिली.  यह मामला उसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां नौ जजों के बेंच ने 7:2 से फैसला करते हुए गर्भसमापन पर बैन लगाने वाले कानून को स्त्री विरोधी बताया और फ़ैसला रो के पक्ष में दिया. हालांकि तब तक रो की तीसरी संतान पैदा हो चुकी थी जिसे उसने एडॉप्शन के लिए दे दिया था. जेन रो और हेनरी वेड के बीच की इस मुकदमेबाज़ी की वजह से ही इस फ़ैसले को रो बनाम वेड कहा गया. इस फैसले में 28 हफ्ते तक एबॉर्शन की मंजूरी दी गई थी, इसे बदलकर बाद में एक बार बीस हफ्ता किया गया. अभी 24 हफ्ते तक का गर्भसमापन मान्य है. 

हंगामा है क्यों बरपा 
अख़बार में छपे ड्राफ्ट के अनुसार अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के अधिकांश जज इस पक्ष में हैं कि अमेरिकी स्त्रियों के गर्भसमापन के अधिकार को उनसे वापस ले लिया जाए. यह लेक किया हुआ ड्राफ्ट स्त्री अधिकारों के हनन का मुद्दा भी सामने रख रहा है. ज्ञात हो कि एबॉर्शन के अधिकार को स्त्रियों के अपने शरीर पर अधिकार के तौर पर देखा जाता है. 1973 में Roe vs. Wade फ़ैसले ने इस अधिकार को समझते हुए ही गर्भसमापन या एबॉर्शन को देश भर में लागू कर दिया था, हालांकि भिन्न राज्यों में उसकी सीमा अलग-अलग निर्धारित की गई थी. इस फैसले को पलटा जाना लाखों औरतों को उनके अधिकार से वंचित कर देगा. तेरह स्टेट्स ने अब तक ऐसे कानून पास कर दिए हैं जिनके अनुसार Roe v. Wade के फ़ैसले के बदलने के साथ ही एबॉर्शन अवैध हो जाएगा. इन कानूनों को ट्रिगर लॉ कहा जा रहा है. 

इसकी शुरुआत मिसिसिपी से हुई थी जहां पंद्रह हफ्ते से ऊपर के गर्भ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था. यह 1973 के फैसले को चुनौती थी. मिसिसिपी में यह फैसला 2018 में लिया गया था. ज्ञात ही कि यह स्टेट रिपब्लिकन बहुल है जिन्हें राजनैतिक धारा में कट्टरपंथी माना जाता है. वहां बाद में इसे घटाकर हार्ट बीट अवधि तक भी किया गया. इस पर रोक लगवाने के लिए लिबरल्स के द्वारा मामले को सुप्रीम कोर्ट तक लाया गया जिसका फैसला जून/जुलाई में लंबित है. पॉलिटीको ने इसी फैसले के लीक ड्राफ्ट को छापा है. 

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क्या है देश के राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना? 
इस मसले पर बोलते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अगर कोर्ट Roe vs. Wade के फैसले को पलटती है तो यह जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की ज़िम्मेदारी होगी कि वे स्त्री अधिकारों की रक्षा करें. अमेरिका में एबॉर्शन को हेल्थकेयर का दर्जा मिला हुआ है.  ' एबॉर्शन इज़ हेल्थकेयर' वहां अभी सबसे ज़्यादा ट्रेंडिंग नारा है. यह माना जा रहा है कि अगर एबॉर्शन के फैसले पर कोई भी विवादित बयान आया, यह अगले चुनाव का मुख्य मुद्दा होगा. 

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