श्रीलंका के राष्ट्रपति के तौर पर अनुरा दिसानायके (Anura Dissanayake Oath) ने शपथ ले ली है. यह पहली बार है जब देश के शीर्ष पद पर कोई वामपंथी नेता पहुंचा है. दिसानायके को द्वीपीय देश की राजधानी में चीन का समर्थक माना जाता है. उन्होंने पद संभालते ही चीन के लिए अपनी वफादारी जताते हुए भारत को आंख दिखाई है. मालदीव में चीन समर्थक मोहम्मद मुइज्जू के बाद अब श्रीलंका से भी भारत की टेंशन बढ़ने के आसार दिख रहे हैं.
भारत को क्या संदेश देना चाहते हैं दिसानायके?
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके का झुकाव चीन की ओर है. वह देश की वामपंथी पार्टी से आते हैं और अपने चुनाव प्रचार में भी उन्होंने मजदूरों और छात्रों के मुद्दे को ही प्रमुखता से उठाया था. दिसानायके की पार्टी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि श्रीलंका भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में नहीं उलझेगा. उन्होंने यह भी कहा कि श्रीलंका की जमीन का इस्तेमाल किसी भी और राष्ट्र के उद्देश्य को पूरा करने के लिए नहीं किया जाएगा.
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उनके बयान के कूटनीतिक संदर्भ निकाले जा रहे हैं. कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि श्रीलंका की भौगोलिक स्थति भारत और चीन दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण है. ऐसे में एक तरीके से नए राष्ट्रपति ने भारत को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि वह चीन को श्रीलंकाई जमीन का इस्तेमाल करने नहीं देंगे. हालांकि, मुइज्जू की ही तरह दिसानायके भी चुनाव प्रचार के दौरान खुलकर चीन के समर्थन में बयान दे चुके हैं. ऐसे में देखना होगा कि बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका को वह चीन के कर्ज जाल से बचा पाएंगे या नहीं.
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