Bangladesh Crisis: शेख हसीना का अब क्या होगा? भविष्य को लेकर अटकलों का दौर जारी 

स्मिता मुग्धा | Updated:Aug 05, 2024, 08:04 PM IST

क्या होगा शेख हसीना का भविष्य 

Bangladesh Crisis Sheikh Hasina: बांग्लादेश संकट के बाद पीएम शेख हसीना ने पद से इस्तीफा देने के बाद देश भी छोड़ दिया है. अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर उनका भविष्य क्या होगा? 

बांग्लादेश में विद्रोह भड़कने के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) ने पद से इस्तीफा दिया है. देश छोड़कर वह निकल गई हैं और अब तक मिली जानकारी के मुताबिक कुछ देर में वह लंदन के लिए रवाना हो सकती हैं. अब सवाल उठ रहे हैं कि बांग्लादेश की दिग्गज राजनीतिक हस्ती का भविष्य आखिर क्या होगा. क्या बाकी की जिंदगी वह राजनीतिक शरणार्थी के तौर पर बिताएंगी या उनकी वतन वापसी का रास्ता बन सकेगा. समझें शेख हसीना के सामने अब क्या विकल्प हैं. 

शरणार्थी बनकर बिताएंगी बाकी जीवन? 
एशियाई देशों में कई ऐसी मशहूर राजनीतिक हस्तियां रही हैं जिन्हें निर्वासन का जीवन जीना पड़ा था. खुद शेख हसीना भी अपने परिवार के सदस्यों की हत्या के बाद 6 साल तक भारत में रही थीं. तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने उनके परिवार को सुरक्षा और आश्रय दिया था. एक बार फिर से यह सवाल उठ रहा है कि क्या अवामी लीग की मुखिया को अब आने वाला जीवन निर्वासित की तरह ही बिताना पड़ेगा.


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इससे पहले बेनजीर भुट्टो और परवेज मुशर्रफ को निर्वासित जीवन जीना पड़ा था. मुशर्रफ की मौत भी पाकिस्तान के बाहर दुबई में हुई थी. शेख हसीना के बेटे की ओर से दावा किया गया है कि उनकी मां अब राजनीति में वापसी नहीं करेंगी. हालांकि, अब तक खुद हसीना ने कोई बयान नहीं दिया है.

बांग्लादेश में लौटने की करेंगी कोशिश 
बांग्लादेश में दोबारा लौटना शेख हसीना के लिए अभी काफी मुश्किल हो सकता है. देश में सेंटीमेंट उनके खिलाफ है और नई सरकार का रुख क्या होता है, यह आने वाले दिनों में साफ होगा. शेख हसीना पहली बार 1996 में सत्ता में आई थीं और तब से लगातार 5 बार वह बांग्लादेश की पीएम रहीं.

सबसे ज्यादा वक्त तक प्रधानमंत्री रहने वाली महिला हैं. ऐसे में उनके लिए फिर से बांग्लादेश लौटना और अपनी पार्टी को संगठित करना बहुत मुश्किल साबित होगा. अब देखना है कि भविष्य में राजनीतिक हालात कैसे मोड़ लेते हैं. 


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देश से बाहर रहकर हो सकती हैं सक्रिय 
शेख हसीना के पास एक विकल्प है कि वह विदेश में रहकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का समर्थन हासिल करने की कोशिश करें. बेनजीर भुट्टो भी निर्वासन में रहते हुए लगातार अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से सक्रिय रहती थीं. हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय समर्थन पाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि फिलहाल देश में पब्लिक सेंटिमेंट ही उनके खिलाफ काम कर रहा है. आने वाली सरकार का रवैया और कार्यकाल भी हसीना के फैसले को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है.  

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