डीएनए हिंदी: पाकिस्तान के कई प्रांतों में बाढ़ (Floods) का कहर जाती है. बलूचिस्तान के कच्छी जिले में बसा छोटा गांव जलाल खान अभी भी बाढ़ से जूझ रहा है. बाढ़ ने घरों को तबाह कर दिया है और गांव के हजारों लोग बेघर हो गए हैं. इस सबके बीच जलाल खान गांव (Jalal Khan Village) का एक हिंदू मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द्र और मानवता की मिसाल पेश कर रहा है. इस छोटे से मंदिर में गांव के कई मुस्लिम परिवारों ने शरण ले रखी है और मुश्किल की इस इस घड़ी में यही उनका संकटमोटक बनकर उभरा है.
पाकिस्तान अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताकिब, नारी, बोलन, और लहरी नदियों में बाढ़ के कारण यह गांव बाकी प्रांत से कट गया था, जिससे दूरदराज के इलाके के निवासियों को खुद अपनी देखभाल के लिए छोड़ दिया गया था. डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, इस कठिन समय के दौरान स्थानीय हिंदू समुदाय ने बाबा माधोदास मंदिर के दरवाजे बाढ़ प्रभावित लोगों और उनके पशुओं के लिए खोल दिए.
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हिंदू संत ने बनाया था यह मंदिर
स्थानीय लोगों के अनुसार, बाबा माधोदास एक हिंदू दरवेश (संत) थे, जो क्षेत्र के मुसलमानों और हिंदुओं द्वारा समान रूप से सम्मान पाते थे. भाग नारी तहसील से गांव में अक्सर आने वाले इल्तफ बुजदार कहते हैं, 'वह ऊंट पर यात्रा करते थे. हमारे माता-पिता द्वारा सुनाई गई कहानियों के अनुसार, संत ने धार्मिक सीमाओं को पार कर लिया था. वह लोगों के बारे में उनकी जाति और पंथ के बजाय मानवता के चश्मे से सोचते थे.'
बलूचिस्तान के हिंदू उपासकों का पूजा स्थल अक्सर कंक्रीट से बना होता है और एक बड़े क्षेत्र को कवर करता है क्योंकि यह ऊंची जमीन पर रहता है, इसलिए बाढ़ के पानी से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है और बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए उनके सबसे कम समय में एक शरणस्थल के रूप में काम करता है. जलाल खान में हिंदू समुदाय के अधिकांश सदस्य रोजगार और अन्य अवसरों के लिए कच्छी के अन्य शहरों में चले गए हैं लेकिन कुछ परिवार इसकी देखभाल के लिए मंदिर परिसर में रहते हैं.
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मंदिर में बने हैं सैकड़ों कैमरे
भाग नारी तहसील के 55 वर्षीय दुकानदार रतन कुमार इस समय मंदिर के प्रभारी हैं. वह कहते हैं, 'मंदिर में सौ से ज्यादा कमरे हैं क्योंकि हर साल बलूचिस्तान और सिंध से बड़ी संख्या में लोग तीर्थयात्रा के लिए यहां आते हैं.' ऐसा नहीं है कि मंदिर को बारिश से कोई नुकसान ही नहीं हुआ. रतन के बेटे सावन कुमार ने डॉन को बताया कि कुछ कमरे क्षतिग्रस्त हो गए लेकिन कुल मिलाकर ढांचा सुरक्षित रहा.
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, परिसर में कम से कम 200-300 लोगों ज्यादातर मुस्लिम और उनके पशुओं को शरण दी गई और उनकी देखभाल हिंदू परिवारों द्वारा की जाती थी. शुरुआत में यह क्षेत्र शेष जिले से पूरी तरह से कट गया था. विस्थापितों ने कहा कि उन्हें हेलीकॉप्टर से राशन उपलब्ध कराया गया था लेकिन जब वे मंदिर में चले गए तो उन्हें हिंदू समुदाय द्वारा खिलाया जा रहा है. इसरार मुघेरी जलाल खान में एक डॉक्टर हैं. यहां आने के बाद से ही उन्होंने मंदिर के अंदर मेडिकल कैंप लगा रखा है.
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उन्होंने बताया, 'स्थानीय लोगों के अलावा हिंदुओं ने अन्य पालतू जानवरों के साथ-साथ बकरियों और भेड़ों को भी रखा है. स्थानीय हिंदुओं द्वारा लाउडस्पीकर पर घोषणाएं की गईं, मुसलमानों को शरण लेने के लिए मंदिर जाने के लिए कहा गया.' वहां शरण लेने वालों का कहना है कि इस मुश्किल घड़ी में उनकी सहायता के लिए आने और उन्हें भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए वे स्थानीय समुदाय के ऋणी हैं. स्थानीय लोगों के लिए बाढ़ पीड़ितों के लिए मंदिर खोलना मानवता और धार्मिक सद्भाव का प्रतीक था, जो सदियों से उनकी परंपरा रही है.
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