डीएनए हिंदी: मिश्र यानी इजिप्ट में बना गीजा का पिरामिड दुनिया के सात अजूबों (7 Wonders of the World) में शामिल है. हजारों साल बना यह पिरामिड (Giza Pyramid) आज भी लोगों के जेहन में सवाल पैदा करता है कि आखिर इसे बनाया कैसे गया होगा. इतने विशालकाय और ऊंचे पिरामिड को बनाने के लिए लाखों पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है. अब एक रिसर्च में सामने आया है कि हजारों साल पहले नील नदी की एक धारा का इस्तेमाल करके औसतन दो टन वजन वाले पत्थरों और दूसरी ज़रूरी सामग्रियों को जुटाया गया था. पुराने समय में न तो कोई मशीन थी न ही कोई खास टेक्नोलॉजी लेकिन इतने बड़े पिरामिड को बना दिया गया.
इस पिरामिड को बनाने के लिए ग्रेनाइट और चूना पत्थर की 23 लाख शिलाओं का इस्तेमाल किया गया है. हर पत्थर का वजन औसतन 2 टन है. गीजा के पिरामिड के बारे में कहा जाता है कि इसे आज से 4,500 साल पहले बनाया गया था. वर्तमान में गीजा के पिरामिड की ऊंचाई लगभग 137 मीटर से भी ज्यादा है. एक रिसर्च में पता लगा है कि पिरामिड बनाने वालों ने उस समय नील नदी की धारा का इस्तेमाल परिवहन के लिए किया.
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नदी की धारा का इस्तेमाल करके हुई पत्थरों की ढुलाई
रिसर्च में सामने आया है कि इतने सालों में नदी की धारा बदल गई है और जिस धारा का इस्तेमाल पत्थरों को ढोने के लिए किया गया था वह खो गई थी. "प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज" नाम के जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में कहा गया है कि तब नदी का ऊंचाई पर बहती थी और उसकी धारा आज से काफी अलग थी. यही वजह रही कि बिना गाड़ियों वाले उस समय में भी पत्थरों की ढुलाई में कोई खास समस्या नहीं हुई.
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फ्रांस के एक कॉलेज के रिसर्चर्स की टीम को इस बात के सबूत मिले हैं. उन्होंने नील नदी की उस खुफु ब्रांच को खोज निकाला है जिसका इस्तेमाल किया गया है. इस टीम ने खुफु ब्रांच की जगह पर 30 फीट गहरी खुदाई की. खुदाई में मिली चीजों की स्टडी करने पर पता चला कि उस समय की सरंचना कैसे थी. यह भी पता चला है कि आज पिरामिड के आसपास जहां रेगिस्तान जैसा है, वह इलाका पहले पानी से डूबा हुआ था. धीरे-धीरे नदी की धारा बदल गई और यह इलाका सूख गया.
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