UN से नाराज हैं नोबेल पुरस्कार विजेता Kailash Satyarthi , बोले- 2 देशों के बीच युद्ध का खामियाजा बच्चे ही भुगतते हैं

पुनीत जैन | Updated:Mar 11, 2024, 07:05 PM IST

Kailash Satyarthi बोले- 2 देशों के युद्ध में पिसते बच्चे हैं

नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी लॉरेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रन कॉन्क्लेव में एक नई वैश्विक पहल SMGC का आगाज किया.

'दो देशों का युद्ध हो या फिर हमला इसमें सबसे बड़ा खामियाजा उस देश के बच्चों को भुगतना पड़ता है. ऐसे युद्धों में यदि कोई सबसे ज्यादा प्रभावित होता है तो वो हैं बच्चे. चाहें वो गाजा के बच्चे हों या फिर यूक्रेन के. ' ये कहना है नोबेल शांति पुरस्कार विजेता Kailash Satyarthi का. 

नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित Kailash Satyarthi लॉरेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रन कॉन्क्लेव में एक नई वैश्विक पहल 'सत्यार्थी मूवमेंट फॉर ग्लोबल कम्पैशन' (एसएमजीसी) का आगाज किया. नोबेल पुरस्कार विजेताओं और नेताओं, व्यवसायों, शिक्षाविदों, युवाओं और नागरिक समाज को साथ लेकर छेड़े गए करुणा के इस नए आंदोलन का उद्देश्य, टूटन और बिखराव जैसी चुनौतियों का सामना कर रही दुनिया को एकजुट करके एक न्यायपूर्ण, समावेशी और पक्षपात रहित विश्व का निर्माण करना भी है. 

Kailash Satyarthi ने कहा कि बच्चों को धर्म और दुनिया के बॉर्डर से अलग कर के देखना होगा. उन्होंने आगे कहा, 'बच्चों को लेकर लोगों में जिम्मेदारी की भावना में कमी दिखाई देती है.' 


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दो देशों के युद्ध पर सत्यार्थी बोले
हालांकि, Kailash Satyarthi ने यह भी कहा कि, 'युद्ध में बच्चों की स्थिति पर उन्होंने दुनिया भर के नेताओं को लिखा और करीब 103 देशों के नोबेल पुरस्कार विजेता एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठाई. ' सत्यार्थी ने कहा,  'हमास ने जो किया वो उसका भी सपोर्ट नहीं करते हैं.' इस दौरान उन्होंने यूएनओ के लचर रवैये को लेकर भी नाराजगी जताई और कहा कि मैं भी इसका हिस्सा हूं.

उन्होने इस दौरान कहा, 'बच्चे पूरी दुनिया के सभी नेताओं की जिम्मेदारी हैं और उन्हें बच्चों को लेकर जागरूक होना होगा. चाहें बात बच्चों के स्वास्थ्य की हो या फिर नए जन्मे बच्चों की.'   

एसएमजीसी की शुरुआत ऐसे वक्त में हुई है जब दुनिया कई बड़ी वैश्विक चुनौतियों से जूझ रही है. इस अवसर पर बोलते हुए, एसएमजीसी के संस्थापक श्री सत्यार्थी ने कहा, 'पिछले कई दशकों से, मैं करुणा के वैश्वीकरण की जरूरत पर बात करता रहा हूं. आज एसएमजीसी के साथ हमने उस दिशा में आगे एक और कदम बढ़ा दिया है.  टूटन और बिखराव से त्रस्त हमारी इस दुनिया को करुणा ही एकजुट कर सकती है.' 

 


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इन गंभीर खतरों की ओर बढ़ रही है दुनिया
उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि विश्व को आज करुणा के एक आंदोलन की आवश्यकता है, के उत्तर में Kailash Satyarthi ने कहा, 'दुनिया आज जितनी समृद्ध और एक दूसरे से जितनी जुड़ी हुई है, उतनी पहले कभी नहीं थी. लेकिन इसके साथ ही बिखराव, युद्ध, गैर-बराबरी, नफरत, जलवायु संकट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के संभावित खतरों जैसी चुनौतियां भी तेजी से बढ़ती जा रही है. इसके सबसे बड़े शिकार हमेशा बच्चे ही होते हैं. संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) पटरी से उतर गए हैं. बेतहाशा धन, संसाधन और ज्ञान के बावजूद, ये समस्याएं क्यों बनी हुई हैं? संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं, विश्व की सरकारें और दुनिया के सबसे अमीर लोग, इसे एकजुट रखने में बुरी तरह असफल रहे हैं.' 

दुनिया में अधिक धन, सुविधाएं और ज्ञान होने के बावजूद भी बच्चों के साथ संकट बना हुआ है. संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं, विश्व की सरकारें और दुनिया के सबसे अमीर लोग भी इस समस्या का समाधान निकालने में असफल हो रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि करुणामय संवाद और करुणापूर्ण कार्यों की मदद से एसएमसीजी वैश्विक शासन कानून में सुधार चाहता है. इसकी कारण ऐसे लोकतांत्रिक संस्थानो का निमार्ण होगा जो बराबरी और सामाजिक सुरक्षा हासिल करने में मददगार होंगे. इसमें युवा शक्ति को बढ़ावा दिया जाएगा.


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कॉन्क्लेव में कौन-कौन लोग थे शामिल
Kailash Satyarthi ने एसएमजीसी का शुभारंभ लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रन कॉन्क्लेव में नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं और दुनिया की अनेक जानी-मानी हस्तियों की उपस्थिति में किया. इनमें नोबेल शांति पुरस्कार विजेता जोडी विलियम्स, मोनाको के पूर्व प्रधानमंत्री सर्ज टेल, पद्म विभूषण डॉ. आर ए मशेलकर, भारतीय सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग, रॉबर्ट एफ कैनेडी ह्यूमन राइट्स की प्रेसिडेंट केरी कैनेडी, ब्राज़ील की सुपीरियर लेबर कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश लेलियो बेंटेस कोर्रा, और पुडुचेरी की पूर्व उपराज्यपाल किरण बेदी सहित कई क्षेत्रों के गणमान्य लोग शामिल थे. 


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इन आंदोलनों में निभाई प्रमुख भूमिका
Kailash Satyarthi ने सिविल सोसाइटी द्वारा छेड़े गए दुनिया के कुछ सबसे बड़े और सफल आंदोलनों का नेतृत्व किया है जिनमें बाल श्रम के खिलाफ 103 देशों में 80,000 किमी लंबा ‘ग्लोबल मार्च’ और ‘ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन’ के प्रमुख रहे हैं. ग्लोबल मार्च के परिणामस्वरूप आईएलओ ने सबसे खतरनाक रूप के बालश्रम पर प्रतिबंध लगाने वाला कन्वेंशन पारित किया जो दुनियाभर में सबसे तेजी से लागू हुआ प्रस्ताव है. उसी प्रकार शिक्षा को एक मानव अधिकार का दर्जा दिलाने में ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. बच्चों की आजादी और शिक्षा के लिए दुनियाभर में किए गए उनके प्रयासों के लिए, 2014 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

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