डीएनए हिंदी: गूगल (Google) और फेसबुक (Facebook) जैसी बड़ी टेक कंपनियों का एकाधिकार (Monopoly) खत्म होने जा रहा है. इन कंपनियों को दुनिया के हर महाद्वीप में अपनी कथित भेदभावपूर्ण नीतियों के लिए कानूनी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. भारत, अमेरिका से लेकर दुनिया के सबसे बड़े संघ यूरोपियन यूनियन (EU) ने भी गूगल और फेसबुक पर कानूनी शिकंजा कस दिया है.
गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट (Alphabet) को EU ने तो चार दिन पहले यानी बुधवार को ही करारा झटका दिया, जब यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अदालत ने EU की तरफ से गूगल पर लगाए एंटीट्रस्ट जुर्माने (antitrust fine) को बरकरार रखा है. अब गूगल को 4.2 बिलियन डॉलर (करीब 32,000 करोड़ भारतीय रुपये) का ऑलटाइम रिकॉर्ड जुर्माना चुकाना होगा.
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गूगल पर यह जुर्माना उसकी तरफ से एंड्रॉयड फोन (Android phone) निर्माताओं को अपना ही सर्च इंजन उपयोग करने का रणनीतिक प्रतिबंध थोपने के लिए लगा है. दावा है कि इस प्रतिबंध से केवल गूगल को लाभ होता है, जो बाजार में उसकी मोनोपॉली बनाता है.
इससे पहले कोरिया ने दिया था झटका
यूरोपियन फैसले से ठीक पहले गूगल को दक्षिण कोरिया (South Korea) में भी करारा झटका लगा था, जहां अधिकारियों ने अल्फाबेट और फेसबुक (Facebook) की पेरेंट कंपनी मेटा (Meta) पर संयुक्त रूप से 71 मिलियन डॉलर (करीब 5,680 करोड़ रुपये) का जुर्माना लगाया था.
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यह जुर्माना दोनों कंपनियों पर कथित रूप से यूजर्स की निजता के उल्लंघन के लिए लगाया गया था. जांच में सामने आया था कि गूगल यूजर्स का डाटा जमा करता है और उसकी स्टडी करता है. साथ ही यूजर्स के वेबसाइट यूज को भी गूगल ट्रैक करने के साथ ही अपने पास जमा करता है.
भारत में भी जल्द कार्रवाई के बन रहे आसार
गूगल की एंटीट्रस्ट नीतियों व मोनोपॉली वाले व्यवहार के खिलाफ भारत भी कमर कसता दिख रहा है. इससे गूगल के लिए राह मुश्किल होती दिख रही है, क्योंकि वह विश्व के विभिन्न हिस्सों में एक के बाद दूसरी लड़ाई हारता दिख रहा है.
भारत में भी IT मंत्रालय (MEITY) और कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI) कि अगुआई में बिग टेक कंपनियों के खिलाफ लगातार एक्शन हो रहे हैं. इससे इन कंपनियों की नियामक प्राधिकरणों के प्रति अप्रतिबंधित गैरजवाबदेही के संभावित परिदृश्य को छेड़ा जा सकता है.
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साथ ही भारतीय न्यूज पब्लिशर्स के साथ डीलिंग में इन कंपनियों के एंटीट्रस्ट बिहेवियर को भी गंभीर चुनौती मिल सकती है. यह भी नोट किया गया है कि भारत बिग टेक कंपनियों पर लगातार न केवल घरेलू कानूनों के प्रति जवाबदेह व जिम्मेदारी दिखाने का दबाव बढ़ा रहा है, बल्कि भारतीय नेटीजंस के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होने की बात भी सुनिश्चित करा रहा है.
संसद की स्थायी समिति है मोनोपॉली से चिंतित
भारत में स्थायी संसदीय समिति बिग टेक कंपनियों की मोनोपॉली से जुड़े चिंताजनक मुद्दों पर भी कई बार बैठक की है. ये प्रयास अल्फाबेट कंपनी पर इस सप्ताह यूरोप, अमेरिका और दक्षिण कोरिया में सामने आए जुर्मानों के बैकड्रॉप में हो रहे हैं.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर (Rajeev Chandrasekhar) ग्लोबल एंटीट्रस्ट कैंपेन में भारत की भूमिका व प्रतिक्रिया तय करने पर माथापच्ची कर रहे हैं. राजीव सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और उनके ऑपरेशंस को ज्यादा पारदर्शी बनाने पर फोकस कर रहे हैं. साथ ही एक और बेहद अहम मुद्दा उनके फोकस में है. यह मुद्दा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से नेटीजंस के विशाल हित में भारतीय कानूनों व नियमों का पालन कराना है.
अमेरिका ला सकता है जल्द ही एक कानून
अमेरिका में हालिया दिनों में गूगल के एकाधिकार को समेटने की दिशा में बहुत सारे कदम उठाए गए हैं. अमेरिका में 13 प्रभावशाली कंपनियों के समूह ने संसद से एक प्रस्तावित विधेयक को हरी झंडी दिखाने की अपील की है, जो कानून बनने पर गूगल व अन्य टेक दिग्गजों की शक्तियों को कम कर सकता है.
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इससे इतर अमेरिकी न्याय विभाग (US Department of Justice) ने एक संघीय जज से गूगल के एकाधिकार वाले व्यवहार की शिकायत की है. यदि यह मुद्दा ट्रायल पर जाता है और गूगल दोषी पाया जाता है तो उसे अपनी बहुत बड़ी आय से हाथ धोना पड़ सकता है. यह शिकायत उन खुलासों के बाद की गई है, जिनमें गूगल पर अपने सर्च इंजन का वर्चस्व बनाए रखने के लिए कथित तौर पर सैमसंग (Samsung), एपल (Apple) और अन्य दिग्गज टेलिकॉम कंपनियों को अरबों डॉलर देने का दावा किया गया है.
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