पाकिस्तान के पूर्व PM इमरान खान दस्तावेज Leak मामले में दोषी करार, जानिए क्या है मामला

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 23, 2023, 12:56 PM IST

imran khan

Imran Khan: इमरान खान को तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले में तीन साल की सजा हो चुकी है. अब दस्तावेज लीक मामले में फैसले आने के बाद इमरान को जेल में और अधिक समय बिताना पड़ सकता है.

डीएनए हिंदी: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के अध्यक्ष इमरान खान (Imran Khan) की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं. पाकिस्तान की एक विशेष अदालत ने देश के गोपनीयता कानूनों का उल्लंघन करने से जुड़े सिफर मामले में इमरान खान को दोषी करार दिया है. कोर्ट ने अभी सजा पर फैसला नहीं सुनाया है. उनके साथ पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को भी दोषी ठहराया गया है. वर्तमान में इमरान खान इस्लामाबाद की जेल में बंद हैं.

इमरान खान के खिलाफ पिछले साल मार्च में वाशिंगटन में पाकिस्तान के दूतावास द्वारा भेजे गए एक गुप्त राजनयिक केबल (सिफर) को लीक करके आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था. इस मामले में अगस्त 2023 में गिरफ्तार किया गया था. इमरान ने उक्त दस्तावेज का इस्तेमाल यह बताने के लिए किया था कि उनकी सरकार एक विदेशी साजिश के परिणामस्वरूप गिरा दी गई थी.

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इमरान ने खुद को बताया निर्दोष
इस मामले की सुनवाई रावलपिंडी की अडियाला जेल में विशेष अदालत के न्यायाधीश अबुल हसनत जुल्करनैन ने की. जियो न्यूज की खबर के मुताबिक, इमरान के साथ पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को भी दोषी ठहराया गया है. हालांकि, पूर्व पीएम इमरान और कुरेशी ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए खुद को निर्दोष बताया है.

क्या था पूरा मामला?
संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बहुमत खो जाने और सरकार गिरने के बाद इमरान खान ने मार्च 2022 में एक रैली के दौरान कागज का टुकड़ा लहराया था. इस कागज को इमरान ने साइफर की नकर बताते हुए दावा किया था कि अमेरिका ने सत्ता से हटाने के लिए उनके खिलाफ साजिश की. PTI अध्यक्ष ने कहा था कि वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक डोनाल्ड लू कथित तौर पर विपक्ष द्वारा पेश अविश्वास मत के माध्यम से उनकी सरकार को गिराने की 'विदेशी साजिश' में शामिल थे. हालांकि अमेरिकी विदेश विभाग ने इमरान के इन आरोपों का खंड़न किया था. इसके बाद इमरान खान के खिलाफ इसी साल 18 अगस्त को सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत मामला दर्ज किया गया था.

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