FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर होगा पाकिस्तान? पेरिस में आज होने वाली बैठक में होगा फैसला

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 21, 2022, 11:16 AM IST

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ

Pakistan FATF grey list: पाकिस्तान पिछड़े काफी समय से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में बना हुआ है. पेरिस में इसे लेकर बड़ा फैसला हो सकता है.   

डीएनए हिंदीः आतंक को बढ़ावा देने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान (Pakistan) की किस्मत को लेकर आज फैसला हो सकता है. पेरिस स्थित संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) पर दुनियाभर की नजरें हैं. ऐसी संभावनाएं जताई जा रही है कि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट (Grey List) से बाहर किया जा सकता है. पाकिस्तान की ओर से दावा किया जा रहा कि उसने इस लिस्ट के बाहर जाने के लिए उन सभी शर्तों का पालन किया है जिसके लिए उसे कहा गया था. अगर इस बैठक में इसे लेकर कोई फैसला लिया जाता है तो पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक आईएमएफ से मदद मिलनी शुरू हो जाएगी. 

4 साल से ग्रे लिस्ट में है पाकिस्तान
बता दें कि पाकिस्तान को जून 2018 में ग्रे लिस्ट में शामिल किया गया था. तब इस पर मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग और कमजोर कानून को लेकर आरोप लगाए गए थे. लगातार पाकिस्तान इसके खिलाफ कार्रवाई की बात कर था लेकिन उसे ग्रे लिस्ट से बाहर नहीं किया गया. जून 2022 में पाकिस्तान ने एफएटीएफ को 34 बिंदुओं पर काम करने की बात कही. इसके बाद माना जा रहा था कि एफएटीएफ पाकिस्तान को लेकर नरम रुख अपना सकता है.  

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कितने देश हैं एफएटीएफ
एफएटीएफ में वर्तमान में 39 सदस्य हैं जिनमें दो क्षेत्रीय संगठन- यूरोपीय आयोग और खाड़ी सहयोग परिषद शामिल हैं. भारत एफएटीएफ के परामर्श और एशिया प्रशांत समूह का सदस्य है. यह संस्था एक अंतर-सरकारी निकाय है, जिसकी स्थापना 1989 में वैश्विक स्तर पर धनशोधन, आतंकवादी वित्तपोषण को रोकने और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली से संबंधित अन्य खतरों से निपटने के लिए की गई थी.

ग्रे लिस्ट में जाने से क्या होता है नुकसान
FATF जिस देश को ग्रे लिस्ट में डालता है, उस पर निगरानी बढ़ा दी जाती है. जब से पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला गया है तब से उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय संघ से वित्तीय सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो गया है. हालांकि FATF की ग्रे लिस्ट में ब्लैक लिस्ट जैसी पाबंदियां नहीं लगती हैं लेकिन इससे बाकी देश सतर्क हो जाते हैं. साथ ही वैश्विक वित्तीय और बैंकिंग प्रणाली भी फंड देने का रिस्क नहीं लेते हैं.

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