China के 'जासूसी युद्धपोत' को श्रीलंका की हरी झंडी, भारत ने सुरक्षा के लिहाज से किया था विरोध

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Aug 13, 2022, 08:30 PM IST

भारत की आपत्ति के बावजूद श्रीलंका ने चीन को अपना युद्धपोत हंबनटोटा पोर्ट पर खड़ा करने की इजाजत दे दी है. भारत इसे सुरक्षा के लिहाज से खतरा मान रहा है.

डीएनए हिंदी: भारत और चीन (India vs China) के बीच लंबे वक्त से सीमा विवाद जारी है और चीन प्रत्येक तरीके से भारत पर हावी होने की तरकीब ढूंढता है. श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट (Hambantota Port) पर चीन इसी नीति के तहत अपना जासूसी युद्धपोत खड़ा करने का ऐलान कर चुका था. इसका भारत ने खुले तौर पर विरोध किया था. वहीं भारत की लाख आपत्तियों के बावजूद श्रीलंका की सरकार ने अब चीन को इस युद्धपोत को हंबनटोटा पोर्ट पर लाने की इजाजत दे दी है.

चीन के बैलिस्टिक मिसाइल एवं उपग्रह निगरानी पोत ‘युआन वांग 5’ को 11 अगस्त को ही हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचना था और ईंधन भरने के लिए 17 अगस्त तक वहीं रुकना था. बारह जुलाई को श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने चीनी पोत को हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़ा करने की मंजूरी दे दी थी. हालांकि, भारत की आपत्ति के बाद आठ अगस्त को मंत्रालय ने कोलंबो स्थित चीनी दूतावास को पत्र लिखकर जहाज की प्रस्तावित डॉकिंग रोकने का अनुरोध किया था.

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भारत की इस आपत्ति के बाद पहले तो श्रीलंका ने चीन को सीधे तौर पर इजाजत देने से मना कर दिया था लेकिन अब एक बार फिर श्रीलंका ने चीन को इस जहाज को एंट्री की इजाजत दे दी है.  श्रीलंका के इस फैसले को लेकर श्रीलंका के बंदरगाह प्रमुख निर्मल पी. सिल्वा ने कहा कि उन्हें 16 से 22 अगस्त तक हंबनटोटा में जहाज को बुलाने के लिए विदेश मंत्रालय की मंजूरी मिल गई है.

इतना ही नहीं श्रीलंकाई अधिकारी ने बताया कि आज मुझे राजनयिक मंजूरी मिली. हम बंदरगाह पर रसद सुनिश्चित करने के लिए जहाज द्वारा नियुक्त स्थानीय एजेंट के साथ काम करेंगे.’ आपकों बता दें कि  हंबनटोटा बंदरगाह को उसकी स्थिति के चलते रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम माना जाता है. इस बंदरगाह का निर्माण मुख्यत: चीन से मिले ऋण की मदद से किया गया है.

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वहीं भारत को इस बात का डर है कि चीन का यह हाईटेक युद्धपोत यहां हंबनटोटा में रुक कर न केवल भारत के समुद्री इलाकों या पोर्ट्स की रेकी कर लेगा बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी भारत के लिए खतरा होगा. इसीलिए भारत ने लगातार चीन की इस नीति का विरोध किया लेकिन अब चीन को श्रीलंका से इजाजत मिल गई है.

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