डीएनए हिंदी: श्रीलंका अपनी आजादी के बाद पहली बार इतने बड़े संकट से गुजर रहा है. विदेशी कर्ज चुकाने की अपनी डेडलाइन को द्वीपीय देश पार कर चुका है और अब वह पहली बार दिवालिया घोषित किया गया है. एक वक्त में श्रीलंका को एशिया के समृद्ध देशों में गिना जाता था लेकिन आज वहां स्थिति बदहाल है. जनता सड़क से लेकर राष्ट्रपति भवन तक प्रदर्शन कर रही है. विदेशी कर्ज अधिकतम सीमा पर है और राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री किसी सुरक्षित जगह पर छुपे हुए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि किसी देश के दिवालिया होने का क्या मतलब होता है.
Defaulter कैसे घोषित किया जाता है
किसी देश को दिवालिया तब घोषित किया जाता है जब वहां की सरकार दूसरे देशों या अंतरराष्ट्रीय संगठनों से लिया गया उधार या उसकी किस्त समय पर नहीं चुका पाती है. श्रीलंका को 7 करोड़ 80 लाख डॉलर का कर्ज चुकाने के लिए मई 2022 तक की छूट दी गई थी. हालांकि, अतिरिक्त छूट के बाद भी कोलंबो ऐसा करने में सफल नहीं रहा और आखिरकार दिवालिया घोषित कर दिया गया है. हालांकि, इस वक्त श्रीलंका की स्थिति और भी बदतर हो चुकी है. जनता सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है और राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांग रही है.
यह भी पढ़ें: श्रीलंका: भारी बवाल के बाद भी इस्तीफे के लिए 13 जुलाई का इंतजार कर रहे राजपक्षे, वजह है खास
China के जाल में फंसकर श्रीलंका की हालत इतनी खराब
श्रीलंका की हालत खराब होने की कहानी लगभग 1 दशक पुरानी है. चीन से निकटता और बेहिसाब कर्ज ने श्रीलंका की स्थिति बद से बदतर कर दी और आज हालत यह है कि देश के पास न विदेशी मुद्रा भंडार ही बचा है और न पेट्रोल-डीजल जैसी जरूरी चींजे हैं. 2019 के अंत में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 7.6 अरब डॉलर था. यह राशि 2020 में पांच महीने के आयात के लिए पर्याप्त थी. गलत नीतियों और और ज्यादा कर्ज लेने की वजह से विदेशी कर्जों और अन्य फॉरेन एक्सचेंज भुगतान के लिए श्रीलंका के पास पर्याप्त मुद्रा भंडार नहीं है.
2020 की शुरुआत से ही श्रीलंकाई रुपया दबाव में था. 2020 के अंत तक श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 5.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया और 2021 के नवंबर महीने में 1.6 अरब डॉलर हो गया था. श्रीलंका की बदहाली की पटकथा एक दशक पुरानी है लेकिन पिछले 3 सालों में गलत नीतियों और कर्ज के भारी दबाव ने स्थिति को इस हाल तक पहुंचा दिया है.
अर्जेंटीना भी हो चुका है दिवालिया
ऐसा नहीं है कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. इससे पहले भी कई देश या तो दिवालिया हो चुके हैं या दिवालिया होने की कगार तक पहुंच चुके हैं. साल 2001 में अर्जेंटीना में भी ऐसे ही हालत बने थे. उस वक्त अर्जेंटीना की सरकार ने कह दिया था कि उनके पास कर्ज चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं. अर्जेंटीना में बेरोजगारी और महंगाई इस चरम पर पहुंच गई थी कि लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन शुरू कर दिया था.
1991 में भारत की स्थिति भी लगभग दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई थी. तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने ऐसी स्थिति में आर्थिक उदारीकरण की नीतियां और सुधार लागू किए थे जिसके बाद देश की अर्थव्यवस्था ने राहत की सांस ली. हालांकि, भारत में उदारीकरण लागू किए जाने को लेकर भी बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था.
यह भी पढे़ं: Sri Lanka Crisis: महासंकट में श्रीलंका, प्रधानमंत्री के बाद राष्ट्रपति भी देंगे इस्तीफा
Pakistan दिवालिया होने की कगार पर
पाकिस्तान अब से पहले भी कई बार दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुका है लेकिन हर बार उसे चीन या सउदी अरब के रूप में कोई न कोई मददगार मिल जाता है. इस वक्त एक बार फिर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बदहाल है. देश में राजनीतिक अस्थिरता के साथ आर्थिक संकट गहराता जा रहा है. पाकिस्तान में रसोई गैस, बिजली, ईंधन और जरूरी दवाओं की कीमतें आसमान छू रही है. पैसे बचाने के लिए कराची के मॉल 10 बजे बंद कर दिए जा रहे हैं.
पूर्व पीएम इमरान खान ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में रूस से भी बड़ा कर्जा लेने की कोशिश की थी. अब पाकिस्तान की एक मात्र उम्मीद चीन से ही है कि चीन किसी भी तरह से उसे दिवालिया होने से बचने के लिए उसे और कर्ज दे दे.
यह भी पढ़ें: Sri Lanka का हाल देखकर याद आ गई रूस की क्रांति, जानिए ज़ार निकोलस-2 के साथ क्या हुआ था
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों पर अलग नज़रिया, फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.