Sri Lanka Political Crisis: भारी दबाव के बाद भी इस्तीफे के लिए 13 जुलाई का इंतजार कर रहे गोटाबाया राजपक्षे, वजह है खास 

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 10, 2022, 08:24 PM IST

राजपक्षे 13 जुलाई को देंगे इस्तीफा

Gotabaya Rajapaksa Resignation: श्रीलंका में आर्थिक संकट के बीच देश भर में स्थिति बेकाबू हो चुकी है. प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है और पीएम रानिल विक्रमसिंघे के निजी मकान को आग के हवाले कर दिया है. इसके बाद भी अब तक राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का इस्तीफा नहीं आया है. राजपक्षे 13 जुलाई को इस्तीफा दे सकते हैं. 

डीएनए हिंदी: श्रीलंका में इस वक्त अराजकता की स्थिति बनी हुई है. राष्ट्रपति भवन पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा जमा लिया है जबकि गोटाबाया राजपक्षे पहले ही किसी अज्ञात लोकेशन पर जा चुके हैं. नाराज प्रदर्शनकारियों ने राजपक्षे के बेटे के घर को भी चारों ओर से घेर लिया है. बताया जा रहा है कि प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के बेटे के घर को घेर लिया और लुटेरा, धोखेबाज जैसे शब्द कहकर अपनी नाराजगी जाहिर की है. इस बीच नई जानकारी सामने आई है कि राजपक्षे खास तौर पर 13 जुलाई को इस्तीफा दे सकते हैं. इस दिन को चुनने के पीछे खास वजह है. 

बुद्ध पूर्णिमा के दिन देंगे इस्तीफा
सूत्रों की मानें तो राजपक्षे 13 जुलाई को इस्तीफा देंगे और इस दिन के पीछे धार्मिक मान्यता को ध्यान में रखकर उन्होंने चुना है. 13 जुलाई को बुद्ध पूर्णिमा है और श्रीलंका बौद्ध बहुल देश है. माना जा रहा है कि बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण दिन को देखते हुए राजपक्षे ने यह खास दिन चुना है. माना जा रहा है कि इस मौके पर वह देश के नाम खास संदेश भी दे सकते हैं. 

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Sinhalese Buddhist के लिए अहम है यह दिन 
श्रीलंका की राजनीति में अब तक किसी न किसी रूप में राजपक्षे परिवार की ही तूती बोलती रही है. राजपक्षे परिवार की राजनीति सिंहली बौद्ध राष्ट्रवाद की रही है. बुद्ध पूर्णिमा का महत्व श्रीलंका में धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर रहा है. इस दिन को श्रीलंका में पोया कहते हैं और यह सार्वजनिक छुट्टी का दिन भी होता है. 

इस्तीफे के दिन का है सांकेतिक महत्व
श्रीलंका की राजनीति पर नजर रखने वालों को मानना है किं इस दिन को चुनने के पीछे खास सांकेतिक महत्व है. सिंहली बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण दिन राजपक्षे अपना इस्तीफा देकर और देश और सिंहली बौद्ध राष्ट्रवाद के संरक्षक के तौर पर खुद को पेश करना चाहते हैं. उनकी कोशिश देशवासियों में फैले गुस्से को कुछ कम करने की है. 

Sinhalese Buddhist के बीच कभी खासे लोकप्रिय थे राजपक्षे 
श्रीलंका बहुसंख्यक सिंहली बौद्धों का देश है. राजपक्षे परिवार को को सिंहली लोगों का अपार समर्थन मिलता रहा है. 2019 के चुनावों में उनकी जीत भी इसी समर्थन के बदौलत हुई थी. श्रीलंका में काम करने वाले मानवाधिकार संगठन और वैश्विक रिपोर्ट भी राजपक्षे राज में अल्पसंख्यकों पर ज्यादती का दावा करती रही हैं.

राजपक्षे परिवार की राजनीति का हिस्सा रहा है सिंहली राष्ट्रवाद
तमिल विद्रोहियों लिट्टे को खत्म करने में भी गोटाबाया राजपक्षे की निर्णायक भूमिका रही थी. श्रीलंका में तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर एक दौर में खूब अत्याचार हुए हैं. राजपक्षे परिवार ने सिंहली राष्ट्रवाद का हमेशा पुरजोर समर्थन किया है. बुद्ध पूर्णिया या पोया के त्योहार से बौद्धों की धार्मिक और भावनात्मक भावनाएं जुड़ी हैं और उसे भुनाने के लिए राजपक्षे ने यह दिन चुना है.  

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