Tunisia Crisis: ट्यूनीशिया में आए आर्थिक और राजनीतिक संकट की वजह क्या है?

अभिषेक शुक्ल | Updated:Dec 11, 2022, 09:30 AM IST

आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ा है ट्यूनीशिया, सड़कों पर उतरे लोग.

Tunisia Crisis: ट्यूनीशिया दोहरे संकटों का सामना कर रहा है. आर्थिक संकट के बीच राजनीतिक संकट ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

डीएनए हिंदी: ट्यूनीशिया (Tunisia) में नए संविधान के तहत होने वाले संसदीय चुनावों के खिलाफ आवाम बागी हो गई है. हजारों नागरिक राष्ट्रपति कैस सईद के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. प्रदर्शनकारी नारा दे रहे हैं, 'कैस सईद बाहर निकलो.' उनका आक्रोश इशारा कर रहा है कि बहुतायत जनता, उनके समर्थन में नहीं है. शनिवार को सेंट्रल ट्यूनिस ने ऐसा नजारा देखा है, जिस पर दुनियाभर में चर्चा हो रही है.

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि 17 दिसंबर को पड़ने वाला वोट अवैध है. उग्र भीड़ का कहना है कि कैस सईद अलोकतांत्रिक तरीके से तख्तापलट करने पर तुले हैं, इसलिए चुनावों का बहिष्कार किया जाए. लोकतंत्र की बहाली की आस लिए सैकड़ों प्रदर्शनकारी सड़कों पर हैं. कैस सईद की ओर से भंग की गई संसद के ज्यादातर नेताओं का कहना है कि लोकतंत्र की बहाली हो और संवैधानिक शासन वापस आए. तख्तापलट के फैसले का विपक्ष जमकर विरोध कर रहा है. 

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कैसे शुरू हुई ट्यूनीशिया में तानाशाही 2.O?

ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति कैस सईद ने साल 2021 में संसद भंग कर दिया था और प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर दिया था. कैस सईद ने संविधान का ऐसा मसौदा तैयार कराया है, जिसमें उनके पास असीमित ताकतें आ जाएंगी और देश तानाशाही की राह पर आगे बढ़ जाएगा. कैस सईद लोकतांत्रिक देश में अलोकतांत्रिक तरीके से शासन चला रहे हैं. 

कैस सईद अपनी मनमानियों को छिपाने के लिए जनमत संग्रह का सहारा ले रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि महज एक चौथाई लोगों का यह मानना है कि नया संविधान ठीक है. नए संविधानस संशोधन के बाद राष्ट्रपति के पास असीमित अधिकार हो जाते हैं. राष्ट्रपति, सरकार और न्यायपालिका पर हावी हो सकता है. इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स का कहना है कि नया संविधान शक्ति संतुलन और पृथक्करण सिद्धांत के खिलाफ है.

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सड़क पर उतरे प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अगर नया संविधान लागू हो जाएगा तो राष्ट्रपति सर्वशक्तिमान हो जाएंगे. संसद शक्तिहीन हो जाएगी और न्यायपालिका के पास कोई ताकत नहीं बचेगी. यह एक लोकतांत्रिक देश  को तानाशाही में बदल देगा.

तानाशाही के आरोपों पर क्या कह रहे हैं ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति?

कैस सईद का दावा है कि ट्यूनीशिया को एक अरसे से चले आ रहे आर्थिक संकट से बचाने के लिए कुछ कानून जरूरी थे. उन्होंने बार-बार दोहराया है कि वे तानाशाह नहीं बनेंगे. नेशनल साल्वेशन फ्रंट ने कहा है कि लोगों को चुनाव का बहिष्कार करना चाहिए.

क्यों चुनावों का हो रहा है विरोध?

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह चुनाव पक्षपातपूर्ण है. चुनाव जिन अधिकारियों की देखरेख में होगा उनमें से ज्यादातर राष्ट्रपति के करीबी होंगे. गठबंधन के नेता भी इस चुनाव का विरोध कर रहे हैं. सितंबर से ही लोग आगामी चुनावों का विरोध कर रहे हैं. पक्षपातपूर्ण चुनाव और संवैधानिक बदलावों के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं. 

श्रीलंका जैसा हो गया है ट्यूनीशिया का हाल

हाल ही में श्रीलंका के आर्थिक संकट ने सुर्खियां बिटोरी थीं. अब ठीक वैसा ही हाल ट्यूनीशिया में नजर आ रहा है. नागरिक बढ़ते आर्थिक संकट और महंगाई से परेशान हैं. लोगों को सही वक्त पर सैलरी नहीं मिल रही है. सामानों से सब्सिडी खत्म हो गई है. जरूरी सामान लोगों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. ट्यूनीशिया में बेतहाशा महंगाई बढ़ रही है. लोग जरूरी सामान नहीं खरीद पा रहे हैं. लोगों का गुस्सा इस वजह भी अब सड़कों पर नजर आ रहा है.

क्यों कैस सईद का समर्थन कर रहे हैं लोग?

जिस देश में साल 2011 के करीब 'अरब स्प्रिंग' की शुरुआत हुई थी, वह देश बर्बादी के मुहाने पर खड़ा है. ट्यूनीशिया अरब का पहला देश था जहां लोकतंत्र की परिकल्पना सामने आई थी. कई देशों ने मांग की थी कि तानाशाही खत्म हो और लोकतंत्र बहाल हो. ट्यूनीशिया ने ऐसा दिन देखा भी लेकिन ग्रहण लग गया. 

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ऐसा नहीं है कि कैस सईद के सिर्फ राजनीतिक विरोधी हैं. कुछ लोग उनके समर्थन में भी हैं, जिन्हें लगता है कि राजनतिक अभिजात्यवाद को खत्म करने में कैस सईद ने अहम भूमिका निभाई है. ट्यूनीशिया में करीब 11 साल पहले राष्ट्रपति जीन अल-अबिदीन बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा था. 1987 से लेकर 2011 तक सत्ता में लगातार बने रहने वाले इस तानाशाह से जनता ऊब चुकी थी. 

लोकतंत्र की राह पर बढ़े ट्यूनीशिया ने कैस सईद में नई संभावनाएं तलाशी थी. कैस सईद साल 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार थे. सईद ने एक से बढ़कर एक चुनावी वादे किए थे, जिस पर जनता लट्टू हो गई थी. उन्होंने चुनाव जीता तो सब बदल गया. उन्होंने 2021 में संसद ही बर्खास्त कर दी. देश की ताकत हथियाते ही उन्होंने संवैधानिक ढांचे को ही बदल दिया. एक बार फिर तानाशाही नीतियों की वजह से यह देश बर्बादी की कगार पर है. 

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