Xi Jinping: विरोधियों का क्रूर दमन, सेना-सिस्टम पर कंट्रोल, वफादारों के सहारे मनमानी करते हैं शी जिनपिंग!

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 18, 2022, 06:49 PM IST

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (फाइल फोटो)

शी जिनपिंग चीन की राजनीति में अजेय बनते जा रहे हैं. उनके खिलाफ प्रतिरोध के स्वर उठते ही नहीं हैं. उन्हें विद्रोह कुचलने का हुनर मालूम है.

डीएनए हिंदी: शी जिनपिंग (Xi Jinping) चीन की राजनीति के अजेय योद्धा हैं. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मतलब ही सिर्फ उनके नाम तक सिमट गया है. वह तीसरी बार सत्ता संभालने जा रहे हैं और उन्हें चुनौती देने वाला भी कोई नहीं है. शी जिनपिंग के पिता शी चोंगशुन कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता थे. वह माओत्से तुंग के बेहद करीबी थे और उनके प्रधानमंत्री भी रहे हैं. वह क्रांतिकारी थे लेकिन कभी माओत्से तुंग की परछाईं से बाहर नहीं निकल पाए. 1953 में पैदा हुए शी जिनपिंग ने अपना कद ऐसे बढ़ाया कि वह माओत्से तुंग से भी आगे निकल गए. उनकी ताकत जीवित किवदंति बन गई है, जिससे आगे निकलना अब किसी के बस की बात नहीं है.

शी जिनपिंग के पिता शी चोंगशुन कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेता थे. क्रांतिकारी थे, इस वजह से उन्हें लोग मानते थे. उनके पारिवारिक बैकग्राउंड ने उन्हें राजनीति में एंट्री दिलाई और वह ऐसे स्थापित हुए कि उन्हें कोई चुनौती तक देने वाला नहीं है. सत्तारूढ़ होने से पहले शी जिनपिंग की छवि अवसरवादी नेता के तौर पर थी. साल 2012 से सत्तारूढ़ हुए शी जिनपिंग को चुनौती देने वाला कोई नेता नहीं है. वह अजेय हैं और ऐसे सियासी समीकरण बन रहे हैं कि अब अजेय ही रहेंगे. अजेय शी जिनपिंग. 

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इस वजह से अजेय हैं शी जिनपिंग

शी जिनपिंग के अजेय होने की सबसे बड़ी वजह है चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर उनका पूरी तरह से कंट्रोल. साल 1949 में जब पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद से ही माओत्से तुंग ने ऐसा नियम बनाया जिसमें पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का सारा कंट्रोल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) को ही सौंप दिया. वजह यह है कि सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (CMC) का चेयरमैन वही होगा जो चीन कम्युनिस्ट पार्टी का नेता होगा.

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शी जिनपिंग साल 2012 में ही सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन बन गए. उन्होंने सेना के भीतर चल रहे सारे गतिरोधों को खत्म कर दिया और पूरी तरह से आर्मी पर कंट्रोल हासिल कर लिया.

देखते-देखते बढ़ती गई शी जिनपिंग की ताकत

शी जिनपिंग ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिसकी वजह से उनकी ताकत और बढ़ती गई. साल 2014 और 2015 में उन्होंने सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के पूर्व वाइस चेयरमैन शू चाइहोउ और PLA के पूर्व जनरल गू बोक्सियोंग के ऊपर गंभीर आरोप लगे. ऐसा दावा किया गया कि सारा खेल, सिर्फ शी जिनपिंग के इशारे पर हो रहा है. यह शोर, रणनीतिक तौर पर बेहद अहम रहा. चीनी सेना के अधिकारियों को यह पता चला गया अगर किसी ने भी शी जिनपिंग के खिलाफ जाने की कोशिश की तो नतीजे बेहद बुरे हो सकते हैं. 

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शी जिनपिंग सेना के बुनियादी ढांचे को बदलकर रख दिया. उन्होंने सेना के चार हेडक्वार्टर- स्टाफ़, पॉलिटिक्स, लॉजिस्टिक्स और आर्मामेंट को ही खत्म कर दिया. उन्होंने इसे 15 अलग-अलग ढांचे में बदल दिया. इसका असर यह हुआ कि सेना का पूरा नियंत्रण शी जिनपिंग के हाथों में चला गया. अब जिसके पास सेना, वही ताकतवर. चीन की सबसे ताकतवर संस्था सेंट्रल मिलिट्री कमीशन है, जिस पर शी जिनपिंग का एकाधिकार हो गया है.  

सेना से लेकर पुलिस तक, हर अधिकारी है जिनपिंग का वफादार

शी जिनपिंग का पुलिस से लेकर सेना तक, हर तंत्र पर कंट्रोल है. चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के जितने भी नेता हैं, उनकी मजबूरी हो गई है शी जिनपिंग के साथ नजर आना. अगर उन्होंने बगावत की तो उनके खिलाफ कुछ भी हो सकता है. उन्हें जेल में भी भेजा जा सकता है.

शी जिनपिंग अपने विरोधियों को जेल में भेजने से जरा भी नहीं चूकते. पूर्व डोमेस्टिक सिक्योरिटी चीफ जू योंगकांग को वह जेल भेज चुके हैं. वह बो शिलाई के करीबी थी और शी जिनपिंग को चुनौती देना चाहते थे.

पहले ऐसा नियम था, जिसमें पोलित ब्यूरो के सदस्यों को विशेषाधिकार मिला था कि उन्हें कोई आपराधिक सजा नहीं दी जाएगी. शी जिनपिंग के आदेश के बाद इन नियमों में बदलाव हो गया. 

खुद को स्थापित करने के लिए सिस्टम तक बदल बैठे शी जिनपिंग

शी जिनपिंग ने सत्ता हासिल करने के बाद अपने देश के नियमों में अप्रत्याशित बदलाव किए. उन्होंने एक के बाद एक कई ऐसे फैसले लिए जिसके बाद सारे नियम-कानूनों पर उनका कब्जा हो गया. उन्होंने चीन सरकार की कार्यप्रणाली तक बदल दी. शी जिनपिंग  के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने भ्रष्टाचार से जुड़े हुए कानूनों को महज इसलिए सख्त कर दिया कि वे अपने विरोधियों को जेल भेज सकें. वह अपनी पार्टी के ही नेताओं के खिलाफ धड़ल्ले से एक्शन लेते गए.

'जो वफादार है, वही सरकार है'

चीन की सत्ता व्यवस्था की पूरी कमान सिर्फ शी जिनपिंग के वफादारों के हाथ में है. उन्होंने अपना उत्तराधिकारी चुना ही नहीं. न ही कोई इस काबिल साबित हो सका जो उन्हें टक्कर दे सके.

माओत्से तुंग से भी आगे निकल गए हैं शी जिनपिंग

बीजिंग, शंघाई, चॉन्गक्विंग और वुहान जैसे शहरों में पार्टी के सचिव वही हैं, जो शी जिनपिंग के वफादार हैं. शी जिनपिंग अपने फैसलों को लागू करवाने के लिए अपने भरोसेमंदों का सहारा लेते हैं. चीन के संविधान तक में शी जिनपिंग घुल-मिल गए हैं. मतलब साफ है कि चीन के लिए जितने अहम माओत्से तुंग हैं, उससे जरा भी कम अहमियत शी जिपिंग नहीं रखते हैं.

इस वजह से कोई बगावत नहीं कर पाता है

शी जिनपिंग के पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों जियांग ज़ेमिन और हू जिंताओ के नाम पर संविधान में आजतक कोई चैप्टर नहीं जोड़े गए. यह साबित करता है कि चीन की सत्ता पर कंट्रोल सिर्फ शी जिनपिंग है. उनकी ताकतें इस हद तक बढ़ गई हैं कि अब कोई उनके खिलाफ जाने की सोचता भी नहीं है.

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