China में Xi Jinping की बढ़ती सियासी ताकत, क्या भारत की बढ़ा सकती है मुश्किलें? जानिए

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Oct 15, 2022, 06:14 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग. (फोटो क्रेडिट Twitter/PIB)

शी जिनपिंग तीसरी बार सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का अध्यक्ष बनने जा रहे हैं. इसका भारत पर क्या असर होगा, आइए जानते हैं.

डीएनए हिंदी: चीन (China) के इतिहास में माओत्से तुंग (Mao Zedong) के बाद अगर कोई सबसे ताकतवर नेता रहा है तो वह शी जिनपिंग (Xi Jinping) ही हैं. वह, अब आजीवन चीन के राष्ट्रपति बने रह सकते हैं. चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान, वह तीसरी बार संभालने वाले हैं. शी जिनपिंग, अपनी सत्ता को कायम रखने के लिए अपनी पार्टी का संविधान तक बदल चुके हैं. साल 2018 में यही अहम बदलाव था, जिसके बाद चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष के 2 कार्यकाल वाले नियम को बदल दिया गया था. शी जिनपिंग की नीतियों से चीनी जनता को आजादी अभी नहीं मिलने वाली है. उनका कद, लगातार बढ़ता जा रहा है.

चीन कम्युनिस्ट पार्टी की 20 राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक होने वाली है. यह बैठक 16 अक्टूबर से शुरू होने वाली है. 5 साल में एक बार होने वाली इस बैठक में यह साफ हो जाएगा कि शी जिनपिंग का कद और कितना बढ़ने वाला है. यही बैठक साबित करेगी कि चीन की सत्ताधारी पार्टी पर शी जिनपिंग की कितनी मजबूत पकड़ है. यही बैठक उन्हें पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक माओत्से तुंग के स्तर तक ले जा सकती है. 

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माओत्से तुंग से भी बड़ा हो रहा है जिनपिंग का कद!

शी जिनपिंग की रणनीति चीन में इतनी शानदार है कि उनके बराबर कोई नेता पनपने ही नहीं पाता है. साल 2012 से ही उन्होंने चीन की राजनीति में ऐसा कदम रखा, जिसके बाद उन्हें रिप्लेस करने वाला कोई नेता नजर नहीं आया. उन्होंने पार्टी में ऐसे बदलाव किए, जिसके बाद उनकी राजनीतिक स्थिति मजबूत होती गई. दो बार के कार्यकाल की समयसीमा को खत्म करने के फैसले ने उनकी दिशा बदल दी. 

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अब अगर चाहें तो शी जिनपिंग आजीवन राष्ट्रपति बने रह सकते हैं. शी जिनपिंग से पहले माओत्से तुंग ही ऐसे नेता थे जिन्होंने आजीवन चीन की सत्ता संभाली. साल 1980 के दशक में देंग शियाओ पिंग ने अध्यक्ष पद के कार्यकाल पर 2 बार की समयसीमा लागू की थी.

भारत पर शी जिनपिंग के कार्यकाल का क्या होगा असर?

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव जारी है. साल 2020 में जब पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच झड़प हुई थी, तब से ही हालात बद से बदतर हो गए थे. शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीनी सेना की ताकत बढ़ी है. दक्षिण चीन सागर और उन इलाकों में जहां चीन भारत के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है, वहां बेहद तनाव है. चीन के साथ भारत के रिश्ते पाकिस्तान जैसे ही हैं. शी जिनपिंग भी भारत के लिए मुसीबत ही पैदा कर रहे हैं.

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शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब आमने-सामने होते हैं तब कूटनीतिक स्तर पर दोनों के बीच बेहतर संवाद होता है लेकिन यह सच है कि चीन भरोसे के काबिल नहीं है. भारत और चीन की प्रवृत्ति में ही अंतर है. एक तरफ शी जिनपिंग की सोच विस्तारवादी और तानाशाही के करीब है, वहीं भारत एक धुर लोकतांत्रिक देश है. एशिया में चीन को टक्कर देना वाला इकलौता देश भारत है. चीन की जगह पश्चिमी देशों का ध्यान अब भारत पर है और वे भारत को मजबूत भागीदार मानते हैं.

जिनपिंग की हर चाल का भारत के पास है काट

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चीन की साम्राज्यवादी सोच पर शिंकजा कसने के लिए कई आर्थिक और व्यापारिक झटके दे चुकी है. कई चीनी कंपनियों का कारोबार यहां बद हो चुका है. शी जिनपिंग सख्त प्रशासक हैं. वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भी अपनी चाल चल सकते हैं. 

भारत का भरोसा वैसे तो स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने वाले देश के तौर पर रही है लेकिन चीन के खिलाफ कई देशों को भारत रास भी आ रहा है. चीन के बढ़ते कद पर भारत की भी नजर है.

भारत किसी देश से सीधे उलझने से तब तक बचता है जब तक कि स्थितियां भयावह न होने लगें. भारत ने गलवान में चीनी प्रतिरोध का मुंहतोड़ जवाब दिया. चीन ने अपने क्षेत्र में सैन्य ढांचों को मजबूत किया तो भारत ने अपने हिस्से में. भारत ने भी चीन के साथ सटे सीमाई इलाकों में बुनियादी सुविधाओं को मजबूती दी. सीमा पर सैनिकों की भी बड़े स्तर पर तैनाती हुई है. 

शी जिनपिंग की हर रणनीति पर भारत की है पैनी नजर

चीन और भारत, दोनों देश वैश्विक तौर पर उभरने की कोशिश में जुटे हैं. भारत भी चाहता है कि वह एशिया की सबसे बड़ी ताकत बने तो चीन भी यही चाहता है. भारत-चीन दोनों के बीच वैश्विक तौर पर तटस्थ रहना ही विकल्प है. यह तथ्य शी जिनपिंग जानते हैं. उन्होंने वैश्विक तौर पर भारत के खिलाफ संवेदनशील मुद्दों पर अलग स्टैंड नहीं लिया है. मोदी और जिनपिंग के बीच कई स्तर की अनौपचारिक शिखर वार्ता हो चुकी है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला है.

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भारत के लिए बुरी नहीं है जिनपिंग की बढ़ती ताकत

शी जिनपिंग की अबतक की नीतियों से भारत वाकिफ है. ऐसे में अगर कोई दूसरा नेता उनकी जगह आता है तो भारत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अगर वही सत्ता में रहते हैं तो उनके हर चाल की काट भारत के पास पहले से तैयार है. चाहे बात अर्थव्यवस्था की हो या सीमा की, भारत किसी भी मामले में चीन को ज्यादती नहीं करने देता है. भारत जिनपिंग की हर संभावित चाल से वाकिफ है.

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