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Balochistan में फिर आतंकी हमला, जानें कैसे बना यह इलाका पाकिस्तान की दुखती रग

बलूचिस्तान अब पाकिस्तान की दुखती रग है. सीमावर्ती प्रांत में होने वाले हिंसक और आतंकी हमलों से निपटना पाकिस्तानी हुकूमत के लिए टेढ़ी खीर हो गया है.

दुनिया भर के आंतकियों को पनाह और संरक्षण देने वाला पाकिस्तान खुद भी आतंक और हिंसा की आग में जल रहा है. बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ ही आए दिन आतंकी हमले और हिंसक वारदात होते रहते हैं. बलूचिस्तान में हुए हालिया आतंकी हमले में 10 सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई है. इस सीमावर्ती प्रांत में बवाल दशकों पुराना है और 1947 से ही पाकिस्तानी हुकूमत से इनका संघर्ष चल रहा है. बलूचिस्तान बवाल की पूरी कहानी समझें.

1.1947 से ही असंतोष चल रहा है

1947 से ही असंतोष चल रहा है
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 1947 में तीन रियासतों को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में शामिल किया गया था. कलात के राजा अहमद यार खान ने पाकिस्तान में विलय से इनकार कर दिया और आजादी चुनी थी. इस विवाद की शुरुआत भी यहीं से होती है. 1955 में कलात को भी बलूचिस्तान में मिला दिया गया और इस तरह से बलूचिस्तान प्रांत बना है. बलूचिस्तान में मुख्य रूप से 4 रियासतें शामिल हुईं, वे थीं: मकरान, खारन, लसबेला और कलात.



2.नवाव नवरोज खान ने शुरू की आजादी की लड़ाई 

नवाव नवरोज खान ने शुरू की आजादी की लड़ाई 
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नवाब नवरोज खान को आजाद बलूचिस्तान आंदोलन का नायक माना जाता है. नवरोज खान ने कलात की बलूचिस्तान से आजादी के गुरिल्ला युद्ध शुरू किया था. इस संघर्ष में वह गिरफ्तार हुए और उनके परिवार के 5 लोगों को फांसी दे दी गई थी. नवाब नवरोज खान की पाकिस्तान में कैद के दौरान मौत हो गई थी. आज भी पाकिस्तान की जेलों में कई बलूच नेता बंद हैं और कई की हत्या कर दी गई है. मानवाधिकार संगठन बलूच कार्यकर्ताओं की कैद और हत्या का सवाल बार-बार उठाते हैं.



3.पाकिस्तानी सेना से बलूच लड़ाकों का रहा संघर्ष

पाकिस्तानी सेना से बलूच लड़ाकों का रहा संघर्ष
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1955 में कलात को जबरन बलूचिस्तान में मिलाए जाने के बाद से ही आजादी की मांग उठने लगी थी. बलूच जनजातियों का तर्क है कि बलूचों का जीवन, आचार-विचार और भौगोलिक स्थिति सिंध और पंजाब की तरह नहीं है. बलूचिस्तान के लोगों का हमेशा यह कहना रहा है कि पाकिस्तानी सरकारों ने उनके विकास पर ध्यान नहीं दिया है. 1973 में बलूचिस्तान में मिलिट्री ऑपरेशन की शुरुआत ने असंतोष को चरम पर पहुंचाने का काम किया था. तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो ने बलूचिस्तान की सरकार को भंग कर दिया. बलूचिस्तानी नेता खैर बख्श मर्री ने पाकिस्तान सरकार के खिलाफ एकजुट होते हुए बलूचिस्तान पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट का गठन किया था. कहा जाता है कि सेना और बलूच लड़ाकों के इस हिंसा में पाकिस्तान के करीब 400 और लगभग 8 हजार बलूच नागरिक-लड़ाकों की मौत हो गई थी.
 



4.बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी आज भी आजादी की मांग पर डटी है

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी आज भी आजादी की मांग पर डटी है
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बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) बलोच अलगाववादियों का सबसे बड़ा संगठन है. आजाद बलूचिस्तान की मांग करने वाले संगठनों के कुछ और नाम बलूचिस्तान रिपब्लिकन पार्टी, लश्कर-ए-बलूचिस्तान और बलूच लिबरेशन फ्रंट हैं. इनमें ऐसे भी संगठन हैं जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के बलूच इलाकों को मिलाकर आजाद बलूचिस्तान की मांग करते रहे हैं. बलूचिस्तान के ज्यादातर नेता इस वक्त विदेशों में शरण लिए हुए हैं. वहीं बलूच विद्रोहियों का पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध चलता रहता है. 



5.रणनीतिक तौर पर अहम, प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर

रणनीतिक तौर पर अहम, प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर
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बलूचिस्तान पर पाकिस्तान की कुटिल नजर इसकी अकूत प्राकृतिक संपदा और भौगोलिक स्थिति की वजह से भी है. बलूचिस्तान का इलाका प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर क्षेत्र है. यह इलाका अफगानिस्तान, ईरान की सीमाओं से भी लगा है. इसके अलावा, पाकिस्तान क रणनीतिक तौर पर अहम ग्वादर पोर्ट भी इसी इलाके में आता है. बलूच लोगों का भी यही आरोप है कि पाकिस्तानी सरकारों ने इस क्षेत्र का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया लेकिन यहां के लोगों की कोई भलाई नहीं की गई है. 
 



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