थ्वाइ्टस ग्लेशियर को डूम्स डे ग्लेशियर भी कहा जाता है. थ्वाइट्स ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बुरा असर पड़ा है. बढ़ता तापमान ग्लेशियर को पिघला रहा है. वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि ग्लेशियर और आसपास के बर्फीली घाटियों की स्थिति में आए भौतिक परिवर्तन की वजह से समुद्र का स्तर 3 से 10 फीट तक बढ़ सकता है.
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नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी में दावा किया गया है कि थ्वाइट्स ग्लेशियर तेजी से अपनी जगह से आगे खिसक रहा है. ग्लेशियर की स्थितियों पर नजर रखने के बाद यह लगा है कि यह 2.1 किलोमीटर हर साल आगे खिसक रहा है.
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2011 से 2019 तक के बीच सैटेलाइट से इस ग्लेशियर के मूवमेंट पर नजर रखा गया. यह सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाला ग्लेशियर साबित हो रहा है. ग्राउंडिंग ज़ोन के सबसे तेज़ पीछे हटने वाले हिस्से में सैटेलाइट से देखी गई दर से दोगुना है.
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वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर के समुद्र तल के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र का मानचित्रण किया है, जिसमें दिखाया गया है कि थ्वाइट्स कितनी तेजी से पीछे हट रहे हैं या पिघल रहे हैं.
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थ्वाइट्स एक तैरता हुआ बर्फ का शेल्फ है जो महाद्वीप से समुद्र में बर्फ के प्रवाह को धीमा करने के लिए एक बांध की तरह काम करता है.कई स्टडी में ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि अगर यह तैरती हुई बर्फ की शेल्फ टूट जाती है तो थ्वाइट्स ग्लेशियर की रफ्तार बढ़ जाएगी और समुद्र के जलस्तर करीब 25 फीसदी तक बढ़ जाएगा.
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अगर थ्वाइट्स ग्लेशियर के आगे बढ़ने और पिघलने की वजह से समुद्री जलस्तर बढ़ा तो कई द्वीपीय देशों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगेगा. शोधकर्ताओं का कहना है पश्चिम अंटार्कटिक ग्लेशियर का पिघलना दुनिया के लिए संकट पैदा कर रहा है.