विपक्ष ने किया विरोध तो चीन ने की तारीफ, पढ़ें नए संसद भवन को लेकर भारत के लिए क्या बोला पड़ोसी देश

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 31, 2023, 04:05 PM IST

China vs India

China Praise New Parliament Building: चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र कहलाने वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स ने नए संसद भवन पर लेख लिखा है, जिसमें भारत को अमेरिका और यूरोपीय देशों से आगाह रहने को कहा गया है.

डीएनए हिंदी: Naya Sansad Bhavan- देश के नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले सरकार और विपक्ष के बीच हुई खींचातान सभी के सामने है. यह खींचातान इतनी बढ़ी कि करीब डेढ़ दर्जन राजनीतिक दलों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार ही कर दिया. ऐसे माहौल के बीच नए संसद भवन के लिए मोदी सरकार को एक ऐसे देश से तारीफ मिली है, जिससे इसकी उम्मीद ही नहीं थी. चीन ने भारत ने नए संसद भवन की तारीफ की है. यह तारीफ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र कहलाने वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स ने की है, जिसमें नए संसद भवन के उपनिवेशीकरण (कॉलोनाइजेशन) के खिलाफ महान प्रतीक बनने की भविष्यवाणी की गई है. साथ ही भारत को अमेरिका समेत सभी यूरोपीय देशों से सतर्क रहने क चेतावनी दी गई है.

हालांकि ग्लोबल टाइम्स के इस लेख के जरिये चीन के बदले सुर की टाइमिंग पर संदेह के बादल भी उठे हैं. इसे पीएम मोदी के जल्द होने वाले अमेरिका दौरे से जोड़कर देख रहे हैं. माना जा रहा है कि इस दौरे के बाद भारत-अमेरिका संबंध और ज्यादा मजबूत होंगे, जो चीन नहीं चाहता है.

'आत्मनिर्भर भारत के उदय की गवाह है नई इमारत'

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, भात में ब्रिटिश गुलामी के दौर की करीब एक सदी पुरानी संसद अब संग्रहालय बन जाएगी. भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी ने रविवार को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन किया है. भारतीय राजधानी को गुलामी की निशानियों से मुक्त कराने के उद्देश्य वाले सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में नया संसद भवन मुख्य हिस्सा था. चीनी अखबार ने पीएम मोदी के भाषण का हवाला देते हुए कहा कि नया संसद भवन महज इमारत नहीं बल्कि आत्मनिर्भर भारत के उदय की गवाह बनेगी. करीब 12 करोड़ डॉलर की इस इमारत में मोदी सरकार ने मोर, कमल का फूल और बरगद के पेड़ शामिल किए हैं, जो भारतीय इतिहास व संस्कृति की विशिष्ट विशेषताओं का प्रतीक हैं. नया संसद भवन डिकॉलोनाइजेशन के खिलाफ एक महान प्रतीक बनेगी.

'उपनिवेशवाद के प्रतीकों को हटाने का बड़ा काम कर रहा भारत'

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, हालिया सालों में मोदी सरकार ने उभरते भारत की छवि पेश करते हुए उपनिवेशवाद के प्रतीकों को हटाने का बड़ा काम किया है. चर्चित इमरातों के नाम बदलने के साथ ही उन्हें दोबारा बनाना, बजट प्रथाओं को बदलना, हिंदी भाषा को अंग्रेजी से ज्यादा तरजीह देना आदि इसमें शामिल है. अखबार ने आगे लिखा, भारत की स्वतंत्रता और गरिमा बनाए रखने की इच्छा के साथ चीन भी खड़ा है. उपनिवेश बनाया गया भारत अब राष्ट्रीय आधुनिकीकरण में जुटा है. करीब 200 साल तक ब्रिटिश उपनिवेश रहे भारत के लिए औपनिवेशिक काल के निशानों को मिटाना बड़ा काम है. अखबार ने लिखा, 1968 में भारत सरकार ने नई दिल्ली में इंडिया गेट के सामने स्थित किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति को हटा दिया था. फिर, 8 सितंबर 2022 को मोदी सरकार ने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के दिन इंडिया गेट के सामने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया.

'चीन चाहता है भारत का विकास, अमेरिका से सतर्क रहे पड़ोसी देश'

ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में आगे लिखा गया है कि चीन भारत के विकास लक्ष्य हासिल करने की कामना करता है. साथ ही पश्चिम के उस नव-उपनिवेशवाद से सतर्क रहने की सलाह एक दोस्त के तौर पर देता है, जो पश्चिम भू-राजनीतिक जोड़तोड़ और उकसावे के जरिये तैयार कर रहा है. अमेरिका ने बड़े पैमाने पर फूट डालो और राज करो की रणनीति से प्रभुत्व बनाया है और अब भी छिपे हुए तरीके से इसी रणनीति पर कायम है.

'मनगढ़ंत है हाथी-ड्रैगन दुश्मनी की अवधारणा'

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि 'हाथी-ड्रैगन दुश्मनी' की अवधारणा अमेरिका की मनगढ़ंत है, जिसके जरिये वह चीन-भारत में विवाद पैदा कर रहा है. भारत-चीन को अपने अधीन करने की शक्ति गंवा चुका अमेरिका अपने फायदे के लिए दोनों देशों में दरार पैदा कर रहा है. यह औपनिवेशिक मानसिकता ही है. ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा, चीन-भारत में दरार डालने के लिए पश्चिमी देश भारत की चापलूसी कर रहे हैं. वे सीमा विवाद में भारत का पक्ष लेकर चीन के खिलाफ उकसाते हैं, जो भारत के लिए पश्चिमी देशों का एक जाल है. भारत को इस भू-राजनीतिक जाल में नहीं फंसना चाहिए. 

'विश्व में चीन-भारत, दोनों की तरक्की के लिए जगह'

ग्लोबल टाइम्स ने आखिर में लिखा है कि एशिया और विश्व, दोनों जगह बहुत बड़ी हैं. इसमें भारत और चीन की तरक्की के लिए समान जगह है. चीन सच में चाहता है कि भारत का विकास हो. चीन के बहुत कम लोग ही ऐसा मानते होंगे कि भारत का आर्थिक और सामाजिक विकास चीन के लिए खतरा बन जाएगा. आशा है कि भारत भी चीन और पश्चिम के साथ अपने रिश्तों को लेकर अधिक स्पष्टता और विश्वास रखेगा.

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