श्रीलंका में ध्वस्त किए जा रहे हिन्दू मंदिर, तमिल हिन्दुओं के सांस्कृतिक नरसंहार को रोकने की उठी आवाज

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Apr 05, 2023, 12:52 AM IST

Hindu Struggle Committe

हिन्दू संघर्ष समिति ने पीएम मोदी से कुछ दिन बाद भारत आ रहे श्रीलंकाई राष्ट्रपति के सामने यह मुद्दा उठाने की अपील की है.

डीएनए हिंदी: श्रीलंका में लंबे समय तक अपने अलग अस्तित्व के लिए सशस्त्र विद्रोह कर चुके तमिल हिन्दू एक बार फिर प्रताड़ित हो रहे हैं. निर्माण व विकास कार्यों के नाम पर श्रीलंका में सरकार लगातार प्राचीन मंदिर ध्वस्त कर रही है. इससे भारतीय संस्कृति के एक बड़े पौरोणिक हिस्से के सबूत हमेशा के लिए गायब होने जा रहे हैं. अब इसके खिलाफ हिन्दू संघर्ष समिति (Hindu Struggle Committee) ने आवाज उठाई है. समिति का कहना है कि इसके जरिये श्रीलंकाई सरकार हिन्दू तमिल समुदाय का सांस्कृतिक नरसंहार कर रही है. समिति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ दिन बाद भारत दौरे पर आ रहे श्रीलंकाई राष्ट्रपति कामिल विक्रमसिंघे के सामने यह मुद्दा उठाने की अपील की है.

दोनों देशों के मैत्री संबंधों के विपरीत है ये कदम

हिंदू संघर्ष समिति के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण उपाध्याय के मुताबिक, श्रीलंका में वर्तमान सरकार के गठन के बाद मंदिरों के स्वरुप को बिगाड़ने और पुरातत्व सर्वे व विनिर्माण कार्यों के नाम पर उन्हें ध्वस्त करने का काम हो रहा है, जो असहनीय अपराध है. पूरी दुनिया के हिन्दू संगठनों में इससे रोष है. उन्होंने आश्चर्य जताया कि श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट में भारत उसका सबसे बड़ा मददगार रहा है. फिर भी श्रीलंकाई सरकार का ऐसा कदम उठाना दोनों देशों के मैत्री संबंधों के विपरीत व उसके लिए घातक है. उपाध्याय ने कहा. भारत सरकार को इसे हिन्दुओं व भारत के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण कदम मानकर तत्काल कड़ी आपत्ति जतानी चाहिए.

अपने पर्यटन उद्योग पर कुल्हाड़ी मार रहा श्रीलंका

हिन्दू संघर्ष समिति ने कहा, श्रीलंका में रामायण कालीन धार्मिक स्थलों का हर साल बड़ी संख्या में भारतीय हिन्दू दौरा करते हैं. ये श्रीलंका के पर्यटन उद्योग की कमाई का सबसे बड़ा जरिया है. ऐसे में श्रीलंकाई सरकार का ये कदम प्रतिगामी और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है, जिसकी बेहद निंदा होनी चाहिए.

दक्षिण अफ्रीकी नेताओं की भी आलोचना की

हिन्दू संघर्ष समिति ने दक्षिण अफ्रीकी राजनेता नलदेई पंडोर की भी आलोचन की है, जिन्होंने श्रीलंका में ट्रुथ रिकन्सीलेशन कमीशन (टीआरसी) को स्थापित करने के लिए श्रीलंकाई विदेश मंत्री अली साबरी और न्याय मंत्री विजयदास राजपक्षे को दक्षिण अफ्रीका आने का निमंत्रण दिया है. समिति ने इस न्योते की आलोचना करते हुए कहा कि यह नेल्सन मंडेला और अल्बर्ट लुथुली जैसे महान नेताओं की अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के नैतिक मूल्यों पर तमाचा मारने जैसा होगा. समिति का कहना है कि टीआरसी का मॉडल श्रीलंका में लागू करवाने का मतलब ऐसा होगा मानो स्वयं आक्रांता को ही सताए गए पीड़ितों को न्याय देने का काम दिया जाए.

अली साबरी जोकि दो भूतपूर्व राष्ट्रपति महिंदा और गोटबाया राजपक्षे दोनों के पुराने करीबी रहे हैं और इन दोनों ही राष्ट्रपतियों पर तमिल हिन्दुओं के प्रति युद्ध अपराध के गंभीर मामले चल रहे हैं. समिति ने आरोप लगाया कि श्रीलंका टीआरसी की स्थापना के बहाने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. UNHRC में श्रीलंका के युद्ध अपराधों पर चर्चा के निर्णायक मोड़ पर पहुंचने के दौरान टीआरसी मॉडल लागू करवाने की कवायद वहां के मानवाधिकार के हत्यारों व युद्ध अपराधियों को बिना भय के दंड मुक्त जीवन देने की कोशिश है, जिसकी आलोचना होनी चाहिए. 

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