डीएनए हिंदी: भारतीय सरजमीं पर करीब 75 साल बाद एक बार फिर चीता (Cheetah) दौड़ते हुए देखने का पल बस अब करीब आने ही वाला है. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के कुनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में लाकर बसाए जा रहे चीतों का नामीबिया (Namibia) में स्वास्थ्य परीक्षण पूरा हो गया है, जिसके बाद इन्हें भारत भेजने का रास्ता साफ हो गया है. ऐसे में अब अगले कुछ दिन में एक बार फिर चीते भारतीय धरती पर फिर से दौड़ते दिखाई देंगे.
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इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स ने जांची है चीतों की सेहत
नामीबिया से चीतों को भारत भेजने से पहले उनकी सेहत की जांच इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स ने जांची है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इन चीतों को भेजने में सफर के दौरान कोई दिक्कत नहीं होगी. ये एक्सपर्ट्स चीता कंजरवेशन फंड (CCF) के थे, जो नामीबिया में चीतों के बचाव के लिए काम करने वाला एक रिसर्च इंस्टीट्यूशन है. विंडहॉक (windhoek) स्थित भारतीय दूतावास ने इस प्रक्रिया के लिए नामीबियाई सरकार को धन्यवाद कहा है.
दुनिया के सबसे तेज प्राणी को संस्कृत से मिला है नाम
करीब 120 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से दौड़ने की क्षमता रखने वाले चीते को दुनिया का सबसे तेज धावक माना जाता है. आप शायद यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि पूरी दुनिया में चीता नाम से पहचाने जाने वाले इस जानवर को यह नाम संस्कृत भाषा से मिला है. चीता शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के 'चित्रकाय' शब्द से मानी गई है, जिसका अर्थ होता है 'बहुरंगी शरीर वाला'.
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भले ही आजादी से पहले अंग्रेजों और भारतीय राजा-महाराजाओं के शौक ने आज की तारीख में चीता को भारतीय सरजमीं से विलुप्त कर रखा है, लेकिन भारत में इनकी उपस्थिति पुरातन काल से रही है. केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु मंत्रालय के मुताबिक, चीते का उल्लेख वेदों और पुराणों जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है.
कुनो पार्क में ऐसे होगा चीतों का रिहेबिलेशन
- नामीबिया से लाए जाने के बाद चीतों को कुनो पार्क में रखा जाएगा.
- शुरुआती 2 से 3 महीने ये 5 वर्ग किमी के संरक्षित एरिया में रहेंगे.
- इस एरिया को 8 फीट ऊंची फेंसिंग से घेर दिया गया है.
- यह कवायद इन चीतों को अन्य जंगली जानवरों से बचाने के लिए है.
- इस एरिया में करीब 200 सांभर, चीतल व अन्य जानवर चीते के शिकार के लिए रखे गए हैं.
- चीतों के स्थानीय वातावरण का आदी होने के बाद यह फेंसिंग हटा दी जाएगी.
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चीतों के लिए हटाए जा रहे इस इलाके से तेंदुए
चीते और तेंदुए, भले ही आम आदमी के लिए एक जैसे दिखने वाले जानवर हैं, लेकिन असल में ये दोनों अलग प्रजाति हैं और आपस में बेहद कट्टर दुश्मन हैं. तेंदुआ अपने इलाके में चीते का रहना सहन नहीं कर सकता. इसी कारण चीतों के लिए संरक्षित क्षेत्र से वन विभाग तेंदुओं को हटा रहा है. फिलहाल इस एरिया में 5 तेंदुए चिह्नित हो चुके हैं, जिन्हें दूसरे जगह भेजने के लिए पकड़ा जा रहा है. इनमें से 3 तेंदुए 5 वर्ग किलोमीटर के उसी खास एरिया में मौजूद हैं, जो चीतों के लिए बनाया गया है.
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इसके लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट (WlI) और माधव नेशनल पार्क (Madhav National Park) के एक्सपर्ट्स और मेडिकल टीम्स को इन तेंदुओं को पकड़ने का काम दिया गया है. यह कोशिश वे स्थानीय वर्कर्स की मदद से दिन-रात कर रहे हैं. इसके अलावा चीतों को स्थानीय वातावरण का आदी होने तक सुरक्षित रखने के लिए इस इलाके से भालू, लोमड़ी और अन्य हिंसक जानवरों को पहले ही हटाया जा चुका है.
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1952 में विलुप्त कर दिए गए थे घोषित
कुनो वाइल्डलाइफ सर्किल के DFO प्रकाश कुमार वर्मा के मुताबिक, भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था. इसके बाद 1952 में इन्हें विलुप्त प्रजाति घोषित कर दिया गया था. भारत में चीतों को दोबारा संरक्षित करने की योजना के पहले चरण में केवल कुनो पार्क को इस काम के लिए चुना गया है. पूरा वन महकमा इस बात को लेकर रोमांचित है और इसके लिए तैयारियों में रात-दिन जुटा हुआ है.
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