डीएनए हिंदी: India in World War- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर रवाना हो चुके हैं. प्रधानमंत्री 21 जून को अमेरिका पहुंचेंगे और 24 जून तक वहां पर रहेंगे. इसके बाद 24 जून को ही पीएम मोदी सीधे मिस्र के लिए रवाना होंगे, जहां वे पहले विश्व युद्ध (First World War) में ब्रिटिश सेना के लिए शहीद होने वाले 4,000 से ज्यादा भारतीय जवानों को श्रद्धाजंलि देंगे. पीएम मोदी 25 जून को मिस्र से भारत वापस लौटने से पहले काहिरा में हेलियोपॉलिस कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव सीमेटरी (पोर्ट ट्वेफिक) पर पहुंचेंगे. यह सीमेटरी उन 4,000 भारतीय जवानों की याद में है, जिन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान मिस्र और फलस्तीन में मित्र देशों की सेनाओं की तरफ से लड़ते हुए शहादत पाई थी. पीएम मोदी का इन शहीद जवानों की समाधियों पर जाकर श्रद्धांजलि देना उसी कवायद का हिस्सा है, जिसके तहत वे बार-बार पहले और दूसरे विश्व युद्ध में भारतीय जवानों के अहम योगदान को याद दिलाते रहते हैं.
पहले भी कई देशों में दिला चुके हैं भारतीय शहीदों की याद
यह पहला मौका नहीं है, जब पीएम मोदी पहले और दूसरे विश्व युद्ध में शहादत देने वाले भारतीय जवानों को विदेश में जाकर याद कर रहे हैं. साल 2015 में फ्रांस दौरे पर लिल्ले में न्यूवे-चैपल वॉर मेमोरियल पर जाकर उन्होंने हजारों शहीद भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि दी थी. पिछले साल विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी मिस्र दौरे के दौरान पोर्ट ट्वेफिक पहुंचकर भारतीय जवानों की शहादत को याद किया था.
11 लाख भारतीय लड़े थे पहले विश्व युद्ध में, 74 हजार हुए थे शहीद
पहले विश्व युद्ध में भारतीय जवानों को ब्रिटिश सेना ने अपनी तरफ से लड़ाई में झोंक दिया था. साल 1914 से 1919 के बीच करीब 11 लाख भारतीय जवानों को भारत से मोर्चे पर भेजा गया था. इनमें से 74,000 जवान शहीद हो गए थे, जिन्हें फ्रांस, ग्रीस, उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, फलस्तीन और मेसोपोटामिया में दफना दिया गया था. इसके अलावा 70,000 भारतीय लंगड़े-लूले होकर घर वापस लौटे थे. अंग्रेजों ने ही नहीं मित्र देशों की सेनाओं के पूरे जमावड़े ने भारतीय जवानों की बहादुरी का लोहा माना था. भारतीय जवानों को 9,200 से अधिक वीरता पुरस्कार मिले थे, जिनमें ब्रिटिश सेना के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस भी 11 थे.
महज 15 रुपये महीना मिली थी सैलरी
देश से हजारों मील दूर दूसरे वतन में दूसरे देश की लड़ाई में शहीद होने वाले भारतीय जवानों का वेतन सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. इन जवानों को ब्रिटिश सेना की तरफ से महज 15 रुपये महीना वेतन मिल रहा था. ब्रिटिश गुलामी वाले भारत से अंग्रेजों ने सैनिकों के हजारों धोबी, खाना बनाने वाले, नाई और मजदूर भी युद्ध में भेजे थे. साथ ही 8 करोड़ पाउंट के उपकरण और करीब 14.5 करोड़ पाउंड की सीधी आर्थिक सहायता भी भारत की तरफ से दी गई थी.
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