डीएनए हिंदी: श्रीलंका में राजनीतिक-आर्थिक संकट (Sri Lanka Crisis) ने दुनियाभर की निगाहें खींच ली हैं. देश के राष्ट्रपति फरार हैं और प्रधानमंत्री इस्तीफा दे रहे हैं. जनता ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सरकारी आवास पर कब्जा कर लिया है और भरपूर अराजकता फैल गई है. कई नेता सलाह दे रहे हैं कि भारत को श्रीलंका की मदद करनी चाहिए. ऐसा ही कुछ मामला श्रीलंका में तब भी था जब लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल एलम (LTTE) यानी लिट्टे की वजह से श्रीलंका में गृहयुद्ध चल रहा था. श्रीलंका ने भारत से मदद मांगी और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने सेना भेज दी. श्रीलंका में जमकर खूनखराबा हुआ और कई भारतीय सैनिक भी शहीद हुए. राजीव गांधी का यही फैसला आगे चलकर उनकी हत्या का कारण बना.
श्रीलंका में सिंहली जनसंख्या बहुसंख्यक है और तमिल अल्पसंख्यक है. लिट्टे ने इन्हीं तमिलों की लड़ाई लड़ने के लिए हथियार उठा लिए थे और श्रीलंका में गृहयुद्ध शुरू हो गया था. साल 1983 में LTTE ने श्रीलंका की सेना के 13 जवानों को मौत के घाट उतार दिया. इस घटना ने आग में घी का काम किया और श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ हिंसा भड़क गई. सेना और LTTE के बीच युद्ध जैसे हालात बन गए. LTTE ने जाफना पर कब्जा कर लिया.
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श्रीलंका ने भारत से मांगी थी मदद
लिट्टे का कहर देखकर श्रीलंका की सरकार ने भारत सरकार से मदद मांगी. 29 जुलाई 1987 को राजीव गांधी के नेतृत्व वाली भारत सरकार और श्रीलंका के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे और भारत ने श्रीलंका में अपनी सेना भेज दी. दोनों देशों के बीच हुए इस समझौते का मकसद लिट्टे और उसके चीफ वी. प्रभाकरण को रोकना था.
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आर्मी एक्शन ही बना राजीव गांधी की हत्या की वजह
जुलाई 1987 में ही भारतीय सेना के जवान जाफना पहुंचने लगे. हालांकि, भारतीय सेना के लिए यह मिशन असफल साबित हुआ और भारत के लगभग 1200 सैनिक इस लड़ाई में मारे गए. बाद में यही समझौता 1991 में राजीव गांधी की हत्या का कारण भी बना. लिट्टे के उग्रवादियों ने साजिश रचकर राजीव गांधी पर आत्मघाती हमला किया. सूइसाइड बम धमाके में राजीव गांधी की मौत हो गई.
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