डीएनए हिंदीं: Taliban News- अफगानिस्तान में अमेरिका और उसके साथियों को पीटकर भगाने का दावा करने वाला तालिबान अब फिर पुराने रंग दिखाने लगा है. तालिबान ने एक बार फिर अफगानिस्तान के हिंदू और सिख जैसे अल्पसंख्यक समुदायों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. हिंदुओं और सिखों के लिए फरमान जारी किया गया है कि वे अपने दीवाली-लोहड़ी जैसे त्योहारों का जश्न नहीं मनाएंगे. त्योहार मनाना भी है तो अपने घर के अंदर रहकर ही मनाएंगे. अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए भी मुस्लिम महिलाओं की तरह सिर से पैर तक पूरा शरीर ढकने वाला बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया गया है. इसके अलावा भी तमाम ऐसे प्रतिबंध अल्पसंख्यक समुदायों पर थोपे जा रहे हैं, जिससे वे अफगानिस्तान छोड़कर भाग जाएं या इस्लाम में धर्म परिवर्तन करा लें.
2021 में था शक, अब हो रहा सच
IANS की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता दोबारा टेकओवर करते समय तालिबान ने धार्मिक स्वतंत्रता के वादे किए थे. इसके बावजूद उसी समय कुछ रिपोर्ट्स में अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के गायब होने की आशंका जताई गई थी. अब ये आशंकाएं सही साबित हो रही हैं. IANS ने आरएफई/आरएल की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि तालिबान का काबुल पर कब्जा होते ही अफगानिस्तान से आखिरी यहूदी परिवार भी दूसरे देश में भाग गया था. हिंदू और सिख परिवारों ने भी बड़े पैमाने पर अफगानिस्तान से पलायन किया था, जो बेहद चर्चा का सबब भी बना था. तालिबान ने भारत के साथ कूटनीतिक रिश्ते कायम करने के लिए हिंदुओं और सिखों के देश छोड़ने पर ऐतराज जताया था और उनकी सुरक्षा का वादा किया था. अब सामने आई रिपोर्ट में कहा गया है कि ये वादे पूरी तरह खोखले साबित हुए हैं.
हिंदुओं और सिखों पर लगाए गंभीर प्रतिबंध
रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान शासन में हिंदुओं और सिखों की हालत समाज के सबसे निचले तबके जैसी हो गई है. उनके सार्वजनिक रूप से अपनी धार्मिक परंपराओं के प्रदर्शन करने, त्योहार मनाने तक पर रोक लगा दी गई है. ऐसे में हिंदू और सिख लगातार अफगानिस्तान छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि तालिबान इंटरनेशनल लेवल पर अपनी थू-थू होने से बचाने के लिए इन्हें अफगानिस्तान छोड़कर नहीं जाने दे रहा है. ऐसे में हिंदुओं और सिखों को चोरीछिपे ही वहां से भागना पड़ रहा है.
परिवार के पलायन के बाद भी रूकी सिख महिला भी छोड़ेगी अफगानिस्तान
फरी कौर उन आखिरी सिखों में से एक हैं, जो काबुल में बचे हुए हैं. फरी कौर के पिता साल 2018 में जलालाबाद शहर में सिखों और हिंदुओं को निशाना बनाने वाले आत्मघाती हमले में मारे गए थे. इस हमले के बाद 1,500 सिखों ने अफगानिस्तान से पलायन किया था, जिनमें फरी की मां और बहनें भी थीं. फरी परिवार के साथ ना जाकर काबुल आ गई थीं. काबुल में भी मार्च 2020 में ISIS-K ने सिख गुरुद्वारे पर हमला किया था, जिसमें 25 लोग मारे गए थे. इसके बावजूद फरी ने अफगानिस्तान नहीं छोड़ा था, लेकिन अब वे अफगानिस्तान छोड़ना चाहती हैं.
फरी ने कहा, मेरे सिख दिखने पर है रोक
फरी ने कहा, मैं सिख के तौर पर ना पहचानी जाऊं, तालिबान इसकी पूरी कोशिश करता है. हिंदू और सिख महिलाओं को बाहर निकलने पर मुस्लिम महिलाओं की तरह बुर्का पहनने का आदेश है. मैं कहीं भी आजादी से नहीं जा सकती. धार्मिक स्वतंत्रता की कमी के कारण मेरे पास विदेश में शरण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. उन्होंने कहा, तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से हमने अपने प्रमुख त्योहार नहीं मनाए हैं. अफगानिस्तान में हमारे समुदाय के बहुत कम सदस्य बचे हैं. हम अपने गुरुद्वारों की देखभाल भी नहीं कर सकते.
कैसे हैं हालात
अफगानिस्तान में 1980 के दशक में रूस के हमला करने से पहले बेहद धार्मिक स्वतंत्रता थी. तब वहां करीब 1 लाख हिंदू और सिख थे. रूसी हमले के बाद वहां धार्मिक कट्टरता शुरू हुई और जिहादी संगठन अस्तित्व में आ गए. रूस और जिहादी संगठनों के बीच के संघर्ष के कारण बहुत सारे अल्पसंख्यक अफगानिस्तान से पलायन कर गए. रूस के वापस लौटने पर तालिबान और अन्य संगठनों में लड़ाई शुरू हो गई. इसमें भी बहुत सारे हिंदुओं और सिखों ने घर और व्यापार खो दिए तो वे भी पलायन कर गए. इसके बाद से यह पलायन लगातार जारी ही है.
वाशिंगटन में गैर-लाभकारी मुस्लिम पब्लिक अफेयर्स काउंसिल में नीति और रणनीति के निदेशक नियाला मोहम्मद ने कहा कि अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, बहाई, ईसाई, अहमदी और शिया मुसलमानों सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति तालिबान के शासन में तेजी से खराब हो गई है. अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के पहले दक्षिण एशिया विश्लेषक रहे मोहम्मद ने कहा, इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले तालिबान जैसे राजनीतिक चरमपंथी गुटों के क्षेत्र में सत्ता में आने से स्थिति लगातार बिगड़ रही है.
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