डीएनए हिंदीः पड़ोसी देश श्रीलंका के हालात (Sri Lanka crisis) लगातार बद से बदतर होते जा रहे हैं. यहां एक बार इमरजेंसी लगा दी गई है. लोगों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए गए हैं. आर्थिक संकट के बाद अब श्रीलंका राजनीतिक संकट से भी जूझ रहा है. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. श्रीलंका पर विदेशी कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि सोने की लंका आखिर पाई-पाई को कैसे मोहताज हो गई.
जीडीपी का 104 फीसदी विदेशी कर्ज
आंकड़ों के मुताबिक इस समय श्रीलंका के ऊपर कुल 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है. श्रीलंका के ऊपर विदेशी कर्ज की रकम उसकी कुल GDP का 104 प्रतिशत हो चुका है. वर्तमान हालात में वह कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं है. विदेश कर्ज चुकाने के लिए अगले एक साल में ही उसे 7.3 अरब डॉलर की जरूरत है.
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श्रीलंकाई रुपये में लगातार गिरावट
श्रीलंका की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती जा रही है. श्रीलंकाई रुपये की कीमत पिछले कुछ दिनों में डॉलर के मुकाबले 80 फीसदी से ज्यादा कम हो चुकी है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मार्च में 1 डॉलर की कीमत 201 श्रीलंकाई रुपये थी जो अब 360 श्रीलंकाई रुपये पर आ चुकी है. 2019 में विश्व बैंक ने श्रीलंका को दुनिया के हाई मिडिल इनकम वाले देशों की कैटेगरी में अपग्रेड किया था, लेकिन दो साल में श्रीलंका की इकोनॉमी अर्श से फर्श पर आ गई.
51 अरब डॉलर पर पहुंचा विदेशी कर्ज
श्रीलंका की बिगड़ती आर्थिक स्थिति का एक कारण उस पर लगातार बढ़ता विदेशी कर्ज भी है. श्रीलंका की स्थिति वर्तमान में दिवालिया हो चुकी है. अप्रैल 2021 तक श्रीलंका के ऊपर कुल 35 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था, जो एक साल में बढ़कर अब 51 अरब डॉलर पर पहुंच चुका है. पूरे दक्षिण एशिया के किसी भी देश में महंगाई का सबसे भयानक स्तर श्रीलंका में ही है.
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सोने की लंका के पास नहीं बचा सोना
सोने की लंका आज कंगाली के कगार पर पहुंच चुकी है. वहां पैसों की इतनी किल्लत है कि सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका को अपने पास रखे गोल्ड रिजर्व में से आधे बेचना पड़ा है. एक साल में ही श्रीलंका रिजर्व में रखा करीब आधा सोना बेच चुका है. श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के पास 2021 की शुरुआत में 6.69 टन सोने का भंडार था. इसमें से श्रीलंका 3.6 टन सोना बेच चुका है.
श्रीलंका में क्यों आई आर्थिक तंगी?
दरअसल श्रीलंका की किसी भी सरकार के पास कोई डेवलेपमेंट मॉडल नहीं रहा. सरकारें आर्थिक प्रबंधन को दुरुस्त करने में हमेशा से नाकाम रहीं. देश का वित्तीय घाटा हर साल बढ़ता रहा. बजट की भारी कमी से यह देश हमेशा से जूझता रहा है और विदेशी कर्ज को कभी भर नहीं पाया है. 2019 एशियन डेवलपमेंट बैंक वर्किंग पेपर ने तो यहां तक कह दिया था कि श्रीलंका एक क्लासिक दोहरे घाटे वाली अर्थव्यवस्था है. ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि श्रीलंका का राष्ट्रीय व्यय उसकी आय से हमेशा से अधिक रहा है. व्यापार योग्य वस्तुओं का उत्पादन भी श्रीलंका में हमेशा से हाशिए पर रहा है.
इस गलत फैसले से बढ़ी मुश्किलें
श्रीलंका सरकार ने कुछ महीनों पहले विदेशी आयात पर प्रतिबंध लगाया. इसका सीधा असर रसायनिक खाद पर पड़ा और इसकी कमी होने लगी. श्रीलंका की इकॉनमी में कृषि का अहम योगदान है औरसरकार ने पूरे श्रीलंका में जैविक खेती को अनिवार्य बना दिया. रसायनिक खाद की जगह जैविक खाद की तरफ रूख करने से खाद्य उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ. उत्पादन घटने लगा और विदेशी आयात पर प्रतिबंध से कीमतें आसमान छूने लगीं. कीमतें इतनी ज्यादा अनियंत्रित हो गईं कि श्रीलंका में आर्थिक आपातकाल की नौबत आ गई.
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कब क्या हुआ
1 अप्रैल: लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन के कारण बिड़ते हालात देख राष्ट्रपति गोटाबाया महिंदा राजपक्षे ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी.
2 अप्रैल: राजपक्षे सरकार ने सड़कों पर सेना तैनात कर श्रीलंका में 36 घंटे के राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू का ऐलान कर दिया.
3 अप्रैल: राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे को छोड़कर सरकार के सभी मंत्रियों का इस्तीफा.
4 अप्रैल: राष्ट्रपति ने अपनी विपक्षी दलों को भी सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव दिया.
5 अप्रैल: राष्ट्रपति पर इस्तीफे का दवाब बढ़ा तो इमरजेंसी हटा ली गई.
12 अप्रैल: सरकार ने विदेशी कर्ज चुका पाने में असमर्थता जताते हुए श्रीलंका को दीवालिया घोषित कर दिया.
18 अप्रैल: नई कैबिनेट का गठन, महिंदा राजपक्षे दोबारा प्रधानमंत्री बनाए गए.
6 मई: श्रीलंका में फिर हालात बिगड़ने पर दूसरी बार लगी इमरजेंसी.
9 मई: प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया.
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