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Gyanvapi History: पांच सौ सालों के दौरान हुए कई हमले, जानिए किस तरह आगे बढ़ा ज्ञानवापी केस

Gyanwapi Masjid के मामले में अब सर्वे करवाने का आदेश दे दिया गया है. जानिए कि पिछले कुछ सालों में यह मामला किस तरह आगे बढ़ा है.

Gyanvapi History: पांच सौ सालों के दौरान हुए कई हमले, जानिए किस तरह आगे बढ़ा ज्ञानवापी केस

ज्ञानवादी विवाद में लंबे समय से चल रही है कानूनी लड़ाई

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डीएनए हिंदी: वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) का विवाद इन दिनों चर्चा में है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि पूरे परिसर का सर्वे करवाया जाए. एक पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद को तोड़कर बनाया गया है और इसके तहखाने में मंदिर से जुड़े प्रमाण भी मौजूद हैं. इसी को लेकर कोर्ट ने वीडियोग्राफी और सर्वे करवाने का आदेश दिया है.

इतिहास की किताबों में कुछ पन्ने इस स्थान का सच बयान करते हैं. इनके मुताबिक, साल 1194 से 1669 के बीच ज्ञानवापी परिसर पर कई बार हमले हुए. काशी हिंदू विश्वविद्यालय और पटना यूनिवर्सिटी में प्राध्यपाक रहे इतिहासकार डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर की किताब हिस्ट्री ऑफ बनारस (History of Benaras) में इसका प्रमुखता से जिक्र है.

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ज्ञानवापी केस में इस किताब को भी संदर्भ के तौर पर पेश किया गया है. इस किताब के हवाले से दावा किया गया है कि इस्लामी आक्रांताओं ने हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को तहस-नहस करने का विवरण भी दर्ज है. इसमें यह भी बताया गया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को 1194 से 1669 के बीच कई बार तोड़ा गया है. 

15वीं सदी में अकबर के समय हुआ था मंदिर का पुनरुद्धार
इस किताब में लिखा गया है कि 15वीं शताब्दी में मुगल शासक अकबर के कार्यकाल में राजा मान सिंह और राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनरुद्धार कराया था. इस किताब में बताया गया है कि अकबर के समय बनारस के हालात बदलते और 1567 में शांति व्यवस्था कायम हुई.

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कागजातों के हिसाब से मानें तो 1936 में चले एक मुकदमें में प्रोफेसर अल्तेकर समेत कई लोगों ने गवाही दी थी. 14 मई 1937 को बनारस मूल के इतिहासकार प्रो. परमात्मा शरण ने ब्रिटिश सरकार की ओर से बयान दिया था. उन्होंने औरंगजेब के समय के इतिहास लेखक के 'मा आसिरे आलम गिरि' पेश करते हुए कहा था कि 16वीं शताब्दी के अंतिम चरण में यह एक मंदिर ही था.

कानून और इतिहास के आधार पर दावा कर रहा है मंदिर पक्ष
मंदिर पक्ष की ओर से पैरवी करने वाले वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी बताते हैं कि भारतीय साक्ष्य अधिनियिम की धारा 57 (13) के तहत सामान्य इतिहास की किताबों में भी वर्णित ऐतिहासिक तथ्य को साक्ष्य के तौर पर मान्यता है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के अंतर्गत अल्तेकर की पुस्तक में उल्लेखित तथ्य और चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा विश्वनाथ मंदिर के लिंग की सौ फीट ऊंचाई और उस पर निरंतर गिरती गंगा की धारा के संबंध में उल्लेख है.

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कुछ यूं रही है ज्ञानवापी की टाइमलाइन

  • 1936 में पूरे ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने के अधिकार को लेकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया था
  • दावदारों की ओर से सात गवाह और ब्रिटिश सरकार की ओर से 15 गवाह पेश किए गए थे
  • 15 अगस्त 1937 को मस्जिद के अलावा अन्य ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने के अधिकार को नामंजूर कर दिया गया
  • 10 अप्रैल 1942 को निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए हाई कोर्ट ने अपील निरस्त कर दी गई
  • 15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और पूजा के अधिकार को लेकर पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा और अन्य लोगों ने मुकदमा दायर किया
  • 1998 में हाई कोर्ट में इस आदेश के खिलाफ, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ की ओर से दो याचिकाएं दायर की गईं
  • 7 मार्च 2000 को पंडित सोमनाथ व्यास का निधन हो गया
  • 11 अक्टूबर 2018 कोप पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी को इस मामले में वाद मित्र नियुक्त किया गया
  • 8 अप्रैल 2021 को वाद मित्र की अपील मंजूर करते हुए पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी किया गया
  • 14 अप्रैल 2022 यानी शनिवार को सर्वेक्षण करवाया जाएगा

 

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