संविधान बनने से पहले समाज किसके नियमों से चलता था?
Jaya Pandey
संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च कानून होता है जिसके नियमों के मुताबिक ही वहां का कामकाज सुचारू रूप से चलता है.
संविधान ही नागरिकों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करता है और राजनीतिक व्यवस्था के लिए रूपरेखा तय करता है.
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि पूर्व आधुनिक काल में जब देश का संविधान नहीं बना था तब आखिर समाज कैसे चलता था और नागरिकों के हितों की रक्षा कौन करता था?
दरअसल पूर्व आधुनिक काल में धर्म ही संविधान की भूमिका अदा करते थे और धर्म के अनुसार ही समाज का संचालन होता था.
माना जाता था कि धर्म अपौरुषेय है जिसे भगवान ने लिखा है. लेकिन भगवान धर्म की व्याख्या के लिए धरती पर नहीं आ सकते थे तो धरती पर उनका प्रतिनिधि मौजूद होता था.
राजा को भगवान का प्रतिनिधि माना जाता था और वह ही समाज को धर्म के हिसाब से चलाता था. पूर्व आधुनिक काल के राजाओं ने खुद को उपाधि भी दी हुई थी.
जैसे अशोक ने देवानाम पियादशी(देवताओं का प्रिय), गुप्त राजाओं ने परम भागवत, मुगल शासकों ने जिल्ल-ए-इलाही की उपाधि ली थी जिसका मतलब था कि वह भगवान या अल्लाह के प्रतिनिधि हैं.