वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 को देश के वन्यजीवों और पौधों को सुरक्षा देने और अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को रोकने के लिए लागू किया गया है.
इसे जनवरी 2003 में संशोधित किया गया तथा कानून के तहत अपराधों के लिये सज़ा और ज़ुर्माने को और अधिक कठोर बना दिया गया.
इस अधिनियम की अनुसूची I में उन लुप्तप्राय प्रजातियों को शामिल किया गया है जिन्हें सबसे ज्यादा संरक्षण की जरूरत है. इसमें शामिल प्रजातियों का पूरे भारत में शिकार करने पर प्रतिबंध है.
अनुसूची I के तहत ही काले हिरण को भी सूचीबद्ध किया गया है जिसका अवैध शिकार और तस्करी नहीं की जा सकती.
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की धारा 51 में अधिनियम के तहत अपराध करने पर दंड का प्रावधान है.
कानून के उपखंड 1 में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत सूचीबद्ध किसी पशु के विरुद्ध अपराध करता है तो उसे न्यूनतम एक वर्ष की जेल की सज़ा दी जाएगी.
इस सजा को अधिकतम छह साल तक बढ़ाया जा सकता है और इस कानून में न्यूनतम जुर्माने के रूप में 5,000 रुपये का भी उल्लेख किया गया है.
इसके अलावा दूसरी बार या उसके बाद अपराध करने पर व्यक्ति को कम से कम दो साल से लेकर छह साल तक की कैद की सजा दी जाती है और दोषी को कम से कम 10,000 रुपये का जुर्माना भरना होता है.