मद्रास रेजीमेंट इंडियन आर्मी की सबसे पुरानी पैदल सेना रेजीमेंट है जिसकी स्थापना 1750 में हुई थी. इसका बहादुरी और वीरता का गौरवशाली इतिहास है.
यह रेजीमेंट 1947-48 के भारत-पाक युद्ध, 1962 के चीनी युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का हिस्सा रहा है.
इसके अलावा यह रेजीमेंट ऑपरेशन पवन, ऑपरेशन मेघदूत और कांगो-लेबनान-सूडान में कई संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भी शामिल रहा है.
इस रेजीमेंट में वर्तमान में 29 बटालियन है और इसका प्रतीक अस्से हाथी है जो हाथी के सात गुणों साहस, धीरज, बुद्धिमानी, शक्ति, आत्मविश्वास, आज्ञाकारिता और वफादारी को दर्शाता है.
मद्रास रेजिमेंट को 45 युद्ध सम्मान, 14 थिएटर सम्मान, 11 COAS यूनिट प्रशस्ति पत्र, 1 अशोक चक्र, 5 महावीर चक्र, 11 कीर्ति चक्र, 36 वीर चक्र, 49 शौर्य चक्र और दूसरे कई वीरता और विशिष्ट पुरस्कार मिले हुए हैं.
इस रेजीमेंट ने 5 ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया है और इसने 2 अर्जुन पुरस्कार भी हासिल किए हैं.
इस रेजीमेंट का आदर्श वाक्य 'स्वधर्मे निधनं श्रेयः' है जिसका मतलब है कि 'अपना कर्तव्य करते हुए मरना गौरव की बात है'.
इसका युद्ध नारा 'वीर मदरासी, आदि कोल्लू, आदि कोल्लू, आदि कोल्लू!' है जिसका मतलब है 'हे बहादुर मद्रासी, मारो और मारो, मारो और मारो, मारो और मारो.'