प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया है, लेकिन क्या आप इस प्राचीन विश्वविद्यालय का गौरवशाली अतीत जानते हैं?
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 427वी ईस्वी में हुई थी, इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है.
यहां करीब 90 लाख किताबें थीं और पूर्वी और मध्य एशिया के करीब 10 हजार विद्यार्थी चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित और बौद्ध सिद्धांतों के बारे में पढ़ा करते थे.
नालंदा विश्वविद्यालय को लेकर दलाई लामा भी कह चुके हैं कि हमारे पास जो भी बौद्ध ज्ञान है वह सभी नालंदा से आया है. दर्शन और धर्म के प्रति नालंदा की विचारधारा ने एशिया की संस्कृति को भी आकार देने में मदद की.
नालंदा से बौद्ध शिक्षाओं और दर्शन का प्रचार करने के लिए विद्वानों को चीन, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में भेजा जाता था जिससे पूरे एशिया में बौद्ध धर्म को फैलाने में मदद मिली.
उस दौर में यहां की आयुर्वेद की प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली की पढ़ाई काफी लोकप्रिय थी. लेकिन शायद नालंदा की सबसे अहम विरासत गणित और खगोल विज्ञान में उसकी उपलब्धियां हैं.
नालंदा विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड और यूरोप के सबसे पुराने विश्वविद्यालय बोलोन्गा से भी 500 साल पुराना है. ऐसा माना जाता है कि भारतीय गणित के जनक माने जाने वाले आर्यभट्ट ने छठी शताब्दी ई. में इस विश्वविद्यालय का नेतृत्व किया था.
1190 के दशक में तुर्क-अफ़गान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों ने हमारी इस खास धरोहर को आग के हवाले कर नष्ट कर दिया. यह आग करीब 3 महीने तक जलती रही.
नालंदा धीरे-धीरे गुमनामी में डूब गया और दफन हो गया. साल 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन-हैमिल्टन ने इसकी खोज की और 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इसे नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना.
भारत की संसद में नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 पारित करके इस धरोहर के उत्थान का काम शुरू किया गया और सितंबर 2014 में छात्रों के पहले बैच का नामांकन हुआ.