1 रुपये की किताब जिसे पढ़कर रातोंरात बदली Kumar Vishwas की किस्मत
Jaya Pandey
कुमार विश्वास देश के बेहतरीन कवि, शायर और लेखक हैं. उन्होंने AAP से राजनीति में भी कदम रखा लेकिन अब पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं.
कुमार विश्वास के पिता चाहते थे कि वे इंजीनियर बनें लेकिन 1 रुपये की किताब पढ़कर उनकी पूरी की पूरी जिंदगी ही बदल गई. इसकी पूरी कहानी उन्होंने नीलेश मिश्रा के शो 'द स्लो इंटरव्यू' में सुनाई है.
कुमार विश्वास ने इंजीनियरिंग में दाखिला तो ले लिया लेकिन उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था. फर्स्ट ईयर में ही वह पढ़ाई छोड़कर घर लौट आए.
उन्होंने बताया कि इंजीनियरिंग के पहले साल में जब मिड ब्रेक हुआ तो उनका रूममेट अपने घर चला गया.
एक दिन अपने कमरे में वह अपने रूममेट की किताबें टटोलने लगे उसमें से एक किताब ऐसी थी जिसे पढ़कर उनकी पूरी जिंदगी ही बदल गई.
उन्होंने बताया कि वह किताब रजनीश की 'माटी कहे कुम्हार से' थी जिसकी कीमत उस समय महज 1 रुपये थी.
उस किताब में एक जगह लिखा था कि हमें अपने मन की आवाज के खिलाफ कभी नहीं जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने का मतलब है कि आप ईश्वर के खिलाफ जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि वह किताब इतनी दिलचस्प थी कि एक झटके में वह पूरी की पूरी किताब पढ़ गए और सोचने लगे कि आखिर उनके मन में क्या है?
फिर अपने सवालों का जवाब उन्हें खुद मिला कि उन्हें कवि बनना है और कविताएं सुनानी हैं और उन्होंने अपने मन की आवाज सुनी और वापस घर लौट आए.
इसके बाद उन्होंने हिंदी साहित्य से ग्रेजुएशन किया और उसमें उन्हें गोल्ड मेडल मिला. उन्होंने एमए और पीएचडी भी किया.
पीएचडी में 'कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना' में रिसर्च के लिए उन्हें 2001 में पुरस्कार भी मिला.