सम्राट कुमार गुप्त ने पांचवीं शताब्दी ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी.
अपनी अंतरराष्ट्रीय ख्याति के कारण दुनियाभर से छात्र यहां अध्ययन करने के लिए आते थे.
12वीं सदी के अंत में आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस मठ को ध्वस्त कर दिया. उसने सभी भिक्षुओं को मार डाला और प्रसिद्ध पुस्तकालय को भी जला डाला.
बख्तियार खिलजी द्वारा ऐसे कट्टरपंथी कदम उठाने और पुस्तकालय को जलाकर 90 लाख पांडुलिपियों को नष्ट करने के पीछे 2 प्रमुख कारण बताए जाते हैं.
ऐसा कहा जाता है कि खिलजी नालंदा पुस्तकालय में मौजूद कुरान की खोज में था, हालांकि वह अपनी खोज में असफल रहा और हताश होकर उसने पुस्तकालय में आग लगा दी.
दूसरी ओर ऐसा माना जाता है कि खिलजी द्वारा पुस्तकालय को जलाने के पीछे दूसरा कारण यह था कि वह बौद्ध धर्म और आयुर्वेद की मूल शिक्षाओं को मिटाना चाहता था.
नालंदा विश्वविद्यालय उस समय एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था और इसकी भयानक तबाही ने भारतीय शिक्षा और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला था.
कहा जाता है कि इस विध्वंस के बाद नालंदा के पुस्तकालय में रखी किताबें कई सप्ताह तक जलती रहीं. बख्तियार खिलजी ने नालंदा के अलावा विक्रमशिला और ओदंतपुरी विश्वविद्यालय को भी नष्ट कर दिया था.