कौन था अर्जुन का किन्नर बेटा, जिससे डर गया था दुर्योधन
Kuldeep Panwar
महाभारत के युद्ध में कौरवों का पूरा कुल और रिश्तेदार खत्म हो गए थे, लेकिन पांडव पक्ष को भी अर्जुन के बेटे अभिमन्यु और इरावन तथा भीम के बेटे घटोत्कच जैसे वीर गंवाने पड़े थे.
अर्जुन और नागकन्या उलूपी के बेटे इरावन को अपने समय के सबसे वीर योद्धाओं में से एक माना जाता है. इरावन की वीरता का जिक्र महाभारत के भीष्म पर्व के 83वें अध्याय में किया गया है.
83वें अध्याय के मुताबिक, महाभारत के सातवें दिन इरावन ने कौरवों की तरफ से लड़ रहे अवंती के राजकुमार विंद और अनुविंद को हराया. फिर उसने कौरवों की सेना का बड़े पैमाने पर संहार किया, जिससे दुर्योधन भी घबरा गया.
भीष्म पर्व के 91वें अध्याय में है कि दुर्योधन ने महाभारत के 8वें दिन शकुनि और कृतवर्मा को इरावन के वध की जिम्मेदारी दी. इरावन को दोनों ने हजारों घोड़ों की सेना के साथ घेर लिया.
इरावन ने कौरवों की पूरी घुड़सवार सेना का अकेले ही संहार कर दिया. इस पर शकुनि के छह पुत्र एकसाथ उसे घेरने आए. इरावन ने उन सभी के साथ अकेले युद्ध किया और उन्हें भी मार दिया.
इरावन की वीरता से भयभीत दुर्योधन राक्षस ऋष्यश्रृंग के पुत्र अलम्बुष के पास पहुंचा. बकासुर वध के कारण भीमसेन को दुश्मन मानने वाला अलम्बुष इरावन के खिलाफ युद्ध में उतर गया.
इरावन और अलम्बुष, दोनों ही मायावी युद्ध में पारंगत थे. दोनों में भयानक माया युद्ध हुआ. इरावन ने अलम्बुष राक्षस के टुकड़े कर दिए, लेकिन उसके सभी अंग फिर जुड़ जाते.
अलम्बुष ने गुस्से में भयंकर रूप धारण कर इरावन पर हमला किया तो इरावन ने भी माया का प्रयोग शुरू कर दिया. तभी इरावन की मां के परिवार के नागों का समूह भी उसकी मदद के लिए पहुंच गया.
इरावन ने शेषनाग जैसा रूप धारण कर लिया और उसके नागों ने राक्षस अलम्बुष को ढक लिया. इस पर अलम्बुष ने गरुड़ पक्षी बनकर सभी नागों को खा लिया और इरावन पर माया अस्त्र का वार किया.
माया अस्त्र से इरावन मोहित हो गया और युद्ध बंद कर दिया. अलम्बुष राक्षस ने मोहित इरावन का सिर अपनी तलवार से काटकर उसे मार दिया.
एक कथा यह भी प्रचलित है कि अर्जुन और उलूपी का पुत्र इरावन किन्नर था. महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों ने श्रीकृष्ण के कहने पर यज्ञ कर कालीमां को प्रसन्न करने की कोशिश की थी.
कालीमां को प्रसन्न करने को नरबलि की जरूरत थी, तब इरावन ने खुद को पेश किया था. इरावन ने बलि से पहले विवाह करने की शर्त रखी थी.
मान्यता है कि इरावन की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण ने खुद मोहिनी रूप धारण किया था और इरावन से शादी की थी. इरावन की बलि के बाद श्रीकृष्ण उसकी विधवा की तरह रोए भी थे.
बलि के कारण प्रसन्न हुई कालीमां ने इरावन को फिर से जीवित करते हुए उसे किन्नरों का देवता घोषित कर दिया था. तभी से दुनिया का हर किन्नर एक रात के लिए अपने देवता इरावन से विवाह करता है.
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