G-20 डिनर में छाई साड़ी भारत में कब से पहनी जा रही है
Kuldeep Panwar
G-20 Summit की खास बात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से वैश्विक नेताओं को दिया डिनर भी रहा है. इस डिनर में सबसे खास बात विदेशी महिलाओं का भारतीय साड़ी पहनकर आना रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरुआत से ही Delhi G-20 Summit को भारतीय परंपरा व संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाने का मंच बनाए हुए हैं. विदेशी मेहमानों का साड़ी पहनना इसी से जुड़ गया है.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस खास मौके पर ढाका की मशहूर जामदानी साड़ी पहनी, जो विभाजन से पहले भारतीय कारीगरी का ही एक हिस्सा थी.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू खुद भी साड़ी पहनती हैं और वे मेजबान के तौर पर भारत मंडपम में आयोजित अपने डिनर में भी साड़ी में ही दिखाई दीं हैं.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी हमेशा साड़ी में ही दिखाई देती हैं और इस आयोजन में भी भारतीय अर्थव्यवस्था का हिसाब-किताब रखने वाली मंत्री यही पहने दिखीं.
जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की पत्नी युको भी साड़ी पहनकर डिनर में आईं. उन्होंने खास बनारसी साड़ी पहनी हुई थी. बनारस को वर्ल्ड सिटी बनाने में जापान भारत को सहयोग कर रहा है.
मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनाथ की पत्नी कबिता रामडानी भी साड़ी पहनकर ही भारत मंडपम में पहुंची. मॉरीशस की ज्यादातर आबादी भारतीय मूल की ही है.
वर्ल्ड बैंक के चेयरमैन अजय बंगा की जड़े भारत में ही हैं. इसका नजारा भी डिनर में दिखा. अब अमेरिकी नागरिक बन चुके अजय की पत्नी रितु बंगा ने भी डिनर में साड़ी ही पहनी.
साड़ी 10 हजार साल से भी ज्यादा समय से भारतीय परिधान का खास हिस्सा रही है. यह विश्व में 5वां सबसे ज्यादा पहना जाने वाला परिधान भी है.
साड़ी कितनी पुरानी है, ये अंदाजा ऐसे लग सकता है कि साड़ी को ठीक वैसे ही लपेटकर पहना जाता है, जिस तरह पाषाण युग में आदिमानव ने पेड़ की छाल या जानवरों की खाल से तन ढंकना सीखा था.
साड़ी 5-6 मीटर लंबे कपड़े का बिना किसी सिलाई के बनने वाला दुनिया का सबसे लंबा परिधान भी है. इसके पौरोणिक होने का सबूत ऋग्वेद और यजुर्वेद की परंपरा में भी साड़ी का जिक्र होना है.
साड़ी का उल्लेख यजुर्वेद में ही सबसे पहले मिलता है. ऋग्वेद में ऋचाओं और यज्ञ हवन के नियम के तहत हवन के समय स्त्री का साड़ी पहनने का विधान बताया गया है.
संस्कृत में शाटिका कहलाने वाली साड़ी महाभारत के युद्ध की नींव भी थी. कौरवों द्वारा द्रौपदी की साड़ी का चीरहरण करने के दुस्साहस पर ही श्रीकृष्ण उन्हें बचाने आए थे. बाद में यही युद्ध का कारण बना था.
रामायण में भी साड़ी का खास जिक्र है. इसी तरह पौरोणिक कहानी नल-दमयंती में भी राजा नल को साड़ी पहननी पड़ जाती है. मौर्य काल में भी साड़ी को तोहफे में भेजा जाता था.
कुरुक्षेत्र के महादानी राजा हर्षवर्धन के कुंभ में पहने हुए वस्त्रों समेत अपनी पूरी संपत्ति दान कर देने पर उनके अपनी बहन की साड़ी पहनकर ही घर लौटने का जिक्र किताबों में है.
मध्य प्रदेश की चंदेरी-माहेश्वरी साड़ी, गुजरात की बांधनी साड़ी, राजस्थान की लहरिया-बंधेज साड़ी, असम की मूंगा सिल्क साड़ी, तमिलनाडु की कांजीवरम, उत्तर प्रदेश की बनारसी, महाराष्ट्र की पैठनी साड़ी चर्चित हैं.
अंग्रेजों के शासनकाल में ब्रिटिश महिलाओं के भी भारत में साड़ी पहनने का जिक्र मिलता है. भारतीय चोली को मौजूदा ब्लाउज जैसी शेप देने का श्रेय अंग्रेज महिलाओं को ही है.