महाराणा प्रताप भारत के सबसे शूरवीर योद्धाओं में से एक थे, जिनका नाम सुनकर ही मुगलों की सेना के डर के मारे छक्के छूट जाते थे.
महाराणा प्रताप की हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल बादशाह अकबर की सेना के खिलाफ दिखाई बहादुरी की कहानियां विदेशों तक प्रसिद्ध है.
महाराणा प्रताप को मुगल सेना के कारण अपना किला छोड़कर जंगलों में भटकना पड़ा, घास की रोटियां खानी पड़ी, लेकिन वे हराए नहीं जा सके.
महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर योद्धा की मौत युद्ध के मैदान में वीरगति प्राप्त करते हुए होनी चाहिए थी, लेकिन दुखद है कि ऐसा नहीं हुआ था.
महाराणा प्रताप की मौत कब, कैसे और किन परिस्थितियों में हुई थी? यदि आप इस बारे में नहीं जानते हैं तो चलिए हम आपको बताते हैं.
महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ राजवंश में राणा उदय सिंह व माता जयवंताबाई के यहां 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ के किले में हुआ था.
महाराणा प्रताप 6 फीट से ज्यादा लंबे, 110 किलो वजन वाले रौबीले व्यक्ति थे, जो 72 किलो का कवच पहनते थे और 81 किलो का भाला रखते थे.
महाराणा प्रताप 1 मार्च, 1573 को मेवाड़ की गद्दी पर बैठे. मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें अधीनता स्वीकार करने को कहा, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया.
मुगल बादशाह अकबर के सेना भेजने पर 18 जून, 1576 को हल्दीघाटी के मैदान में महाराणा प्रताप की सेना ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया.
हल्दीघाटी में ना महाराणा प्रताप हारे और ना ही अकबर की सेना जीती, लेकिन सुरक्षा के लिए महाराणा को किले छोड़कर जंगलों में रहना पड़ा.
जंगलों में रहने के दौरान महाराणा प्रताप ने फिर से सेना जुटाई और एक के बाद एक अपना मेवाड़ राज्य दोबारा मुगलों से जीतना शुरू कर दिया.
चांवड़ में महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की नई राजधानी बनाई. चांवड़ के किले में ही 29 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप का दुखद निधन हुआ.
महाराणा प्रताप जब धनुष की डोर खींच रहे थे. तभी कमान टूटने से उनकी आंत में गंभीर चोट आई, जिससे 57 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
कहा जाता है कि महाराणा के निधन की खबर लेकर मुगल जासूस जब दिल्ली पहुंचे तो मुगल बादशाह अकबर की आंखें भी दुख से छलक आई.
मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, अकबर बोला- इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है. धन-दौलत खत्म हो जाएंगी, लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे.