Apr 5, 2024, 10:50 PM IST

मुगल बादशाह कैसे करते थे रोजा इफ्तार?

Kuldeep Panwar

भारत में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली मुस्लिम सल्तनत मुगलों की थी, जिसमें रमजान को लेकर भी खास तैयारियां की जाती थीं.

मुगलों के दौर में रमजान का चांद दिखने का ऐलान 11 तोपों की सलामी से होता था. क्या आप जानते हैं कि मुगल बादशाह रोजा इफ्तार कैसे करते थे?

पहले मुगल बादशाह बाबर ने खुद अपनी डायरी 'तुज्क-ए-बाबरी' में अपने रोजे रखने की जानकारी दी है. साथ ही इसमें पूरी नमाज भी पढ़ते थे. 

दूसरे मुगल बादशाह हुमायूं को इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूंनी ने इतना दरियादिल बताया है कि जकात (दान) देने के लिए उन्हें नकद पैसा नहीं दिया जाता था.

अकबर के बारे में सरवत सौलत ने 'इस्लामी समुदाय का संक्षिप्त इतिहास' में लिखा है कि वे पहले नमाज पढ़ते थे और मस्जिद में झाड़ू देते थे.

इस किताब में कारण तो नहीं बताया गया है, लेकिन यह लिखा गया है कि अकबर धीरे-धीरे नमाज, रोजा, हज और जकात से दूर हो गए.

बादशाह जहांगीर के शासन के 13वें साल का जिक्र तुज्क-ए-जहांगीरी किताब में है, जिसमें उनके रोजे रखने और उलेमा के साथ इफ्तार करने की जानकारी है. 

मुगल बादशाह खुद भले ही रमजान और रोजे को लेकर पाबंद ना हों, लेकिन उनके दौर में यदि युद्ध में रमजान महीना आता था तो बड़ा भोज देते थे.

मुगल सेना के कमांडर हर दिन एक-दूसरे के कैंप में भोज देते थे. तोपे चलवाते थे, जिसकी तुलना इतिहासकार मिर्जा नथुन ने भूकंप से की है.

शहजादा खुर्रम (मुगल बादशाह शाहजहां) शराब के भयानक आदी थे, लेकिन अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत से पहले उन्होंने शराब छोड़ दी.

साल 1621 में शराब छोड़ने के बाद खुर्रम ने बंगाल-बिहार की भयानक गर्मी में भी रोजे रखे, जिसने सभी लोगों को हैरान कर दिया था.

मोहम्मद सालेह कंबोह लाहौरी की किताब 'अमल-ए-सालह' के मुताबिक, जब बेहद गर्मी में कुछ लोग ही रोजा रख पाए तो शहजादा खुर्रम भी उनमें शामिल थे.

'द प्रिंसेज ऑफ द मुगल अम्पायर' में है कि खुर्रम के रोजे रखने से बंगाल के सूफी और उलेमा इतने प्रभावित हुए कि बगावत में उसके साथ हो गए. 

खुर्रम के बादशाह शाहजहां बनने पर सभी मुस्लिम त्योहार शान-शौकत से मनाए जाने लगे, जिसमें रमजान के लिए वे सालाना 30 हजार रुपये लोगों में बांटते थे.

औरंगजेब को मुगल बादशाहों में सबसे ज्यादा धार्मिक और कट्टर माना जाता है, जो नमाज पढ़ने और रोजा रखने में पूरी पाबंदी करते थे. 

औरंगजेब के बारे में लिखा गया है कि वह ज्वार और मकई की रोटी से रोजा इफ्तार करते थे और फिर तरावीह पढ़कर इबादत में जुट जाते थे.

आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के समय भी रमजान का आयोजन धूमधाम से होने की जानकारी 'बज्म-ए-आखिर' किताब में दी गई है.