मुगल शहजादी जिसकी खूबसूरती ही नहीं चालाकी भी थी मशहूर, महल, बाजार और जहाज की थी मालकिन
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जहांआरा का जन्म दो अप्रैल, 1614 को हुआ था. उनके बारे में कहा जाता है कि वह बेहद खूबसूरत और चतुर महिला थीं.
शाहजहा के एक दरबारी की पत्नी हरी खानम बेगम ने उन्हें शाही जीवन के तौर-तरीके सिखाए थे क्योंकि उनकी मां का निधन कम उम्र में हो गया था.
जहांआरा के पिता शाहजहां ने उन्हें राजकुमारों की तरह हर विद्या में निपुण कराया था और वह व्यापार और प्रशासन का काम भी बखूबी संभालती थीं.
जहांआरा बला की हसीन होने के साथ-साथ विदुषी भी थीं. उन्होंने फ़ारसी में दो ग्रंथ भी लिखे थे और गीत-संगीत और कलाओं की अच्छी जानकार थीं.
1648 में बने नए शहर शाहजहांनाबाद की 19 में से 5 इमारतें उनकी देखरेख में बनी थीं. सूरत बंदरगाह से मिलनेवाली पूरी आय उनके हिस्से में आती थी.
जहांआरा ने उस समय का सबसे सुंदर बाजार चांदनी चौक भी बसाया था. उस दौर में उन्होंने ऐसी व्यवस्था की थी कि हरम की महिलाएं भी बाजार घूम सकें.
मशहूर इतिहासकार इरा मुखौटी बताती हैं, 'शाहजहांनाबाद जिसे हम आज पुरानी दिल्ली कहते हैं का नक्शा जहांआरा ने अपनी देखरेख में बनवाया था.'
जहांआरा का अपना पानी का जहाज साहिबी था जो डच और अंग्रेजों से वसूली करने सात समंदर पार जाता था. यह पूरी कमाई का हिसाब जहांआरा के हिस्से में थी.
दारा शिकोह का साथ देने के बाद जहांआरा अपनी स्थिति मजबूत रखने में कामयाब रहीं. औरंगजेब के शासन में भी वह एक प्रभावी हस्ती थीं और पादशाही बेगम का खिताब भी था.