महाराणा प्रताप की कसम के कारण आज भी भटक रहे हैं ये लोग
Kuldeep Panwar
सड़कों के किनारे आपने बंजारों जैसी ड्रेस में लोहे का घरेलू सामान बेचते हुए लोगों को देखा होगा, जो कुछ समय बाद दूसरी जगह चले जाते हैं.
गाड़िया लोहार या भूबलिया कहलाने वाला यह समुदाय ताउम्र अपना सामान गाड़ियों में लादकर एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहता है.
क्या आप जानते हैं खानाबदोशी का जीवन जीने वाले इन लोगों का भारतीय इतिहास के शूरवीरों में से एक महाराणा प्रताप से करीबी संबंध है?
गाड़िया लोहार लोग मेवाड़ की सेना के हथियार बनाते थे. हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल बादशाह अकबर ने चित्तौड़गढ़ किले को कब्जा लिया था.
युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की जंगल में मुलाकात गाड़िया लोहार समुदाय से हुई थी. महाराणा प्रताप ने मुगलों से अपना राज्य वापस लेने की कसम खाई.
गाड़िया लोहार समुदाय ने भी प्रतिज्ञा ली कि जब तक महाराणा प्रताप चित्तौड़गढ़ नहीं जीत लेते, तब तक वे लोग भी मेवाड़ की धरती पर नहीं लौटेंगे.
महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना से मेवाड़ के तमाम इलाके जीते, पर चित्तौड़गढ़ नहीं जीत पाए. दुर्भाग्यवश पहले ही उनका निधन हो गया.
महाराणा प्रताप के निधन से गाड़िया लोहारों की प्रतिज्ञा अधूरी रह गई और वे कभी मेवाड़ नहीं लौट सके, लेकिन वे इस प्रतिज्ञा पर आज भी कायम हैं.
गाड़िया लोहार समुदाय पूरी जिंदगी जगह-जगह भटकता रहता है, लेकिन आज तक उसने मेवाड़ की धरती पर वापस कदम नहीं रखा है.
अपनी प्रतिज्ञा के कारण गाड़िया लोहार समुदाय के लोग कभी पक्का घर भी नहीं बनाते हैं. वे हमेशा अस्थायी डेरे बनाकर ही जिंदगी बिताते हैं.
गाड़िया लोहार समुदाय का जिक्र यूनेस्को कूरियर में भी अक्टूबर 1984 में हो चुका है. कोबास पुएंते ने इन पर 'गडुलिया लोहार: भारत के घुमंतू लोहार' लेख लिखा था.