Jun 24, 2024, 08:24 PM IST

वो 'नमक हराम' जिसकी वफादारी से खुश होकर अंग्रेजों ने गिफ्ट की थी हवेली

Rahish Khan

दिल्ली का इतिहास बहुत पुराना रहा है. यह शहर एक बार नहीं बल्कि 7 बार उजड़ा और फिर बसा.

इसके सीने में तमाम किस्से दफन हैं. इनमें एक किस्सा वफादारी और दगाबाजी का भी है.

देश की राजधानी के बीचों-बीच एक ऐसी हवेली बनी हुई है, जिसे गद्दारी का प्रतीक कहा जाता है.

इस हवेली के पास से आज भी जब लोग गुजरते हैं तो गद्दार और नमक हराम कहते हैं.

दरअसल, ये कहानी 19वीं सदी से जुड़ी है, जब देश में अंग्रेजों की हुकूमत हुआ करती थी.

जब अंग्रेजों के सामने तमाम रियासतों ने घुटने टेक दिए तब इंदौर के महाराजा यशवंतराव होलकर ने उनसे लोहा लेने की ठानी थी.

1803 में दिल्ली के पटपड़गंज इलाके में यशवंतराव होलकर और अंग्रेजों के बीच भयंकर युद्ध हुआ.

इस युद्ध में होलकर का साथ मुगलों ने दिया. वहीं लाला भवानी शंकर खत्री अंग्रेजों के साथ जुड़ गए.

भवानी एक समय महाराजा यशवंतराव होलकर का वफादार हुआ करता था. लेकिन उसने गद्दारी करके अंग्रेजों से हाथ मिला लिया.

भवानी, होलकर की सभी खुफिया जानकारियां अंग्रेजों को पहुंचाता था. युद्ध के दौरान भी उसने ऐसा ही किया.

नतीजा यह हुआ कि तीन दिन लड़ने के बाद मराठा फौज को अंग्रेजों से हार का सामना करना पड़ा.

इस वफादारी से खुश होकर अंग्रेजों ने भवानी को तोहफे में एक हवेली दी. वो जब इसमें रहने लगा तो लोग यहां से गुजरते हुए इस 'नमक हराम की हवेली' कहने लगे.