माता सीता का वो वचन जो भगवान राम ने महल में निभाया
Rahish Khan
भगवान राम ने पुत्र, भाई, पति और योद्धा हर रूप में अपना धर्म बखूबी निभाया है. तभी उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम कहा जाता है.
रामायण में प्रभू राम और माता सीता से जुड़ी अनेक कथाएं हैं. इनमें से एक कथा माता सीता और भगवान राम से जुड़े एक वचन की भी है.
यह कथा उस वक्त की है जब धोबी के कहने पर प्रभु राम ने अपनी पत्नी सीता को त्याग दिया था और राजा बनकर अपने राजधर्म का पालन कर रहे थे.
माता सीता जब पत्नी बनकर अयोध्या आईं तो प्रभु राम ने उन्हें वचन दिया था कि वे हमेशा एक पत्नी व्रत का पालन करेंगे. जिस स्थिति में सीता रहेंगी, वो खुद भी वैसे ही रहेंगे.
भगवान राम ने इस वचन का प्रमाण रावण वध के बाद अयोध्या के राजा बनने के बाद दिया. उस दौरान एक धोबी ने सीता जी के चरित्र पर सवाल उठाया था.
समाज में कोई बुरी परंपार शुरू ना हो इसके लिए उन्होंने कठोर निर्णय लेते हुए सीता को त्याग कर उन्हें वनवास भेज दिया था.
वनवास के दौरान माता सीता को जमीन पर सोना पड़ा और जंगली फल खाकर जीवन गुजारना पड़ रहा था.
तब भगवान राम ने भी ऐसा जीवन जीने का निर्णय लिया. वह महल में रहते हुए भी जमीन पर सोते थे. वनवासियों की तरह बेहद सादा भोजन करते थे.
राजा होने के बावजूद भगवान राम ने वही जिंदगी गुजारी, जो जंगल में रहकर माता सीता जी रही थीं. इतना ही नहीं सीता के त्यागने के बाद प्रभु राम ने दूसरा विवाह भी नहीं किया.
जबकि उस समय में राजाओं में कई विवाह करने की परंपरा थी. लेकिन राम ने सीता को वचन दिया था कि वो हमेशा एक पत्नी व्रत का पालन करेंगे.