1857 में ब्रिटिश गुलामी के खिलाफ पहला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम बहुत सारे गुमनाम योद्धाओं की वीरता का गवाह रहा है. ऐसी ही वीर अजीजन बाई भी थी.
पेशे से तवायफ होने के बावजूद अजीजन बाई ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारियों का साथ दिया था, जिससे ब्रिटिश सेना के छक्के छूट गए थे.
अजीजन बाई का जन्म 22 जनवरी 1824 को मध्य प्रदेश के राजगढ़ के जमींदार शमशेर सिंह के घर हुआ था. उनका नाम अंजसा रखा गया था.
इतिहासकारों का दावा है कि अंग्रेज सिपाहियों ने मेले में अंजसा की खूबसूरती देखकर उसे अगवा कर लाठी मोहाल के कोठे पर बेच दिया था.
अंग्रेजों के इस काम के कारण ही अंजसा को उनसे नफरत थी, जो उनके नाचने वाली तवायफ अजीजन बाई बनने पर भी कायम रही थी.
अजीजन बाई ने कोठे पर नृत्य की शिक्षा लेने के साथ ही पुरुषों की तरह लिबास पहनना, बंदूक चलाना और घुड़सवारी करना भी सीखा था.
अजीजन अपने समय की सबसे प्रसिद्ध नर्तकी थी. उनके हर मुजरे में आने वाले धन-जेवरात को वे चुपके से क्रांतिकारियों तक भिजवा देती थीं.
अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की आस अजीजन बाई को कानपुर ले आई, जहां नाना साहेब के साथ तात्या टोपे, अजीमुल्ला खान आदि क्रांति की तैयारी में थे.
मूलगंज की रोटी वाली गली में रहने वाली अजीजन बिठूर में नृत्य के बाद तात्याटोपे के संपर्क में आईं, जहां उन्होंने इनाम के बजाय सेना की वर्दी मांगी.
नाना साहेब ने अजीजन को बहन मानते हुए अपनी तलवार सौंपी और अंग्रेजों की जासूसी कर क्रांतिकारियों को सूचना देने की जिम्मेदारी सौंपी.
अजीजन ने कोठों की 400 तवायफों की 'मस्तानी टोली' बनाई, जो अंग्रेज सेना के बीच जाकर नाचने के बहाने जासूसी का काम करने लगी.
अंग्रेजों के बिठूर में निर्दोष औरतों-बच्चों की हत्या करने से नाराज अजीजन और उनकी मस्तानी टोली ने बीबीघर में छिपी अंग्रेज औरतों को मारकर कुएं में फेंक दिया था.
नाना साहेब के नेतृत्व में बिठूर के युद्ध में क्रांतिकारियों की सेना के साथ अजीजन और उनकी मस्तानी टोली भी हाथ में कटार लेकर लड़ी थीं.
युद्ध में अजीजन पकड़ी गईं. ब्रिटिश जनरल हैवलॉक ने तात्याटोपे का पता बताने के बदले माफी देने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उसने मना कर दिया.
ब्रिटिश जनरल ने अजीजन को तोप के मुंह पर बंधवाकर फिर से क्रांतिकारियों का पता पूछा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया, जिस पर उन्हें बम से उड़ा दिया गया.