Jul 12, 2024, 09:27 AM IST

ये तवायफ जिसके साथ होती, वही दिल्ली पर राज करता था

Aditya Prakash

आम जनता में तवायफों को लेकर बहुत अच्छी धारणा नहीं है. मगर इतिहास के कई तवायफों का जिक्र बड़े फक्र से लिया जाता है.

इन्हीं महान तवायफों में शुमार थीं बेगम समरू, जो बला की खूबसूरत तो थी ही, साथ ही आला दर्जे की बहादुर भी थी. 

समरू ने कई बार मुगल बादशाह को शिकस्त खाने से बचाया, उसकी दिलेरी से प्रभावित होकर मुगल बादशाह ने उसे बेगम फरजाना जैबुन्निसा के नाम का खिताब दिया था.

समरू की कश्मीरी मां दिल्ली के चावड़ी बाजार की एक तवायफ थी. बाद में वो मेरठ के एक नवाब लतीफ खान के हरम का हिस्सा बन गई.

कोठे पर ही समरू की मुलाकात फ्रांसीसी अधिकारी वाल्टर राइनहार्ट सोम्ब्रे से हुई, वाल्टर राइनहार्ट पहली ही नजर में दिल हार बैठै.

समरू का साथ मिलते ही राइनहार्ट के पास सरधना की रियासत आ गई. समरू ने भी ईसाई धर्म को अपना लिया.

1787 में गुलाम कादिर ने बादशाह शाह आलम के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए और मुगलों की राजधानी दिल्ली पर हमला कर दिया.

समरू की फौज ने शाह आलम  का साथ दिया, गुलाम कादिर की युद्ध में शिकस्त हुई. राइनहार्ट की मौत के बाद वहीं रियासत को देखने लगी थीं. 

1788 में गोलुकगढ़ के नवाब कुलीन खां ने बादशाह के खिलाफ बगावत कर दी. समरू ने साथ मिलने से बादशाह को फिर से दिल्ली पर फतेह हासिल हुई.