कनॉट प्लेस जिसे सीपी के नाम से जाना जाता है, इसे लोग दिल्ली का दिल भी कहते हैं.
यहां देश के मशहूर प्रतिष्ठान हैं. ब्रिटिश आर्किटेक्ट रॉबर्ट टोर रसेल ने डब्ल्यू. एच. निकोलस की मदद से इसका डिजाइन तैयार किया था.
आज हम आपको बताएंगे कि यहां खड़ी इमारतों, दुकानों और दफ्तरों का किराया कौन वसूलता है?
आपको यह तो पता ही होगा कि आजादी के बाद यह जगह आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनती गई. आज यह दुनिया के सबसे महंगे मार्केट प्लेस में से एक है.
संपत्ति के हिसाब से देखें तो भारत सरकार इस जगह की असली मालिक है लेकिन आजादी से पहले यहां की ज्यादातर संपत्तियां किराये पर दे दी गई थीं.
यहां स्टारबक्स, पिज़्ज़ा हट, वेयरहाउस कैफे जैसी बड़ी कंपनियों और बड़े बैंकों के दफ्तर हैं. इनसे महीने का लाखों रुपये वसूला जा रहा है.
पुराने दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम, 1958 के बाद, सीपी में कई संपत्तियों का मासिक किराया 3,500 रुपये से कम है. ऐसी अधिकांश संपत्तियों का बाजार किराया आज लाखों में है.
यह अधिनियम मकान मालिकों को उन किरायेदारों के लिए हर साल 10 प्रतिशत से अधिक किराया बढ़ाने से रोकता है. जिन्होंने भारत की आजादी से पहले संपत्तियों पर कब्जा कर लिया था.
जिससे संपत्ति के मालिकों को एशिया के सबसे महंगे बाजार में अभी के हिसाब से ना के बराबर किराये की आय होती है.इससे समझ में आता है कि इन जगहों के मूल मालिकों को कुछ हजार रुपये ही किराये मिल रहे होंगे और किरायेदार करोड़ों कमा रहे हैं.