Feb 17, 2024, 11:04 AM IST

मुगल बादशाह अकबर की बुआ से क्यों डर गया था तुर्की का खलीफा

Kuldeep Panwar

मुगल सल्तनत के दौरान में उनके बादशाहों को ही नहीं कुछ औरतों को भी बेहद शक्तिशाली माना जाता था. इनमें से ही एक गुलबदन बेगम भी थीं.

गुलबदान बेगम पहले मुगल बादशाह बाबर की बेटी और अकबर की बुआ थीं, जिन्हें मुगल साम्राज्य की पहली महिला इतिहासकार भी माना जाता है.

गुलबदन बेगम ने अपने भाई हुमायूं की जीवनी हुमायूं नामा में अपने अनुभव भी लिखे थे. हालांकि आज इस किताब के कई पन्ने गायब हैं. 

गुलबदन बेगम को उस पहली भारतीय महिला के तौर पर याद किया जाता है, जिसने मुगलों के समय अरब जाकर मक्का-मदीना में हज यात्रा की थी.

गुलबदन बेगम को इसके लिए तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के तत्कालीन बादशाह मुराद अली को चुनौती देनी पड़ी थी, जो तब दुनिया का सबसे ताकतवर राज्य था.

ऑटोमन साम्राज्य के बादशाह खुद को 'खलीफा' यानी पूरे मुस्लिम समुदाय का सर्वोच्च मुखिया कहते थे. ऐसे में उन्हें चुनौती देना बड़ी बात थी.

1523 में जन्मी गुलबदन बाबर की तीसरी पत्नी दिलदार बेगम की बेटी थी, जो 6 साल की उम्र में काबुल से आगरा आईं पहली मुगल महिला थीं. 

गुलबदन बेगम ने 1576 में 53 साल की उम्र में अपने भतीजे और मुगल बादशाह अकबर से इजाजत लेकर लश्कर के साथ मक्का की यात्रा शुरू की थी.

समुद्र पर पुर्तगाली शासकों का कब्जा होने के कारण गुलबदन को अपने लश्कर समेत दो साल तक गुजरात के सूरत में फंसा रहना पड़ा था.

माना जाता है कि अकबर ने गुलबदन बेगम की सुरक्षा के लिए अपने दो आलीशान मुगल जहाज सलीमी और इलाही से उन्हें अरब भेजा था.

फतेहपुर सीकरी से गुलबदन बेगम खैरात में बांटने के लिए सोने-चांदी से भरे बक्से और बारह हजार सम्मान की पोशाकें ले गई थीं.

ईरान में कबीले हज यात्रियों पर हमला करते थे. इतने जोखिम में भी गुलबदन बेगम ने गर्म रेगिस्तान में चार दिन लगातार ऊंट पर यात्रा की थी.

मक्का पहुंचने पर गुलबदन बेगम ने खैरात में सोना-चांदी बांटनी शुरू की तो इसे ऑटोमन सुल्तान ने अकबर की अरब पर कब्जे की कोशिश माना.

ऑटोमन खलीफा मुराद ने चार बार शाही फरमान भेजकर गुलबदन को अरब दुनिया से वापस जाने का हुक्म दिया, लेकिन उसने हर बार ठुकरा दिया.

पांचवे फरमान में तीखी धमकी पर गुलबदन ने कहा कि मैं चार साल रहने की तय करके आई थी, वे पूरे हो गए हैं, इसलिए लौट रही हूं.

इसे मुगल महिला के विद्रोह की अभूतपूर्व घटना माना जाता है. 1580 में गुलबदन वापस चलीं और 1582 में फतेहपुर सीकरी पहुंचीं.

गुलबदन ने अरब के संस्मरणों का जिक्र अकबर की जीवनी अकबरनामा में जुड़वाया था, जिसमें उनकी वापसी पर नवाबों जैसी शान का भी जिक्र है.