Nov 13, 2023, 10:13 AM IST

इन 6 तवायफों को हिन्दुस्तान में मिली थी बेहद इज्जत

Ritu Singh

आज आपको हिंदुस्तान की उन 6 तवायफों के बारे में बताएंगे जिन्हें आज भी लोग याद करते हैं और उनका नाम इज्जत के साथ लिया जाता है.

बेगम हज़रत महल- इन्हें 'अवध की बेग़म' भी कहा जाता था. फैज़ाबाद की पेशे से तवायफ़ हज़रत महल को खवासिन के तौर पर शाही हरम में शामिल किया गया. आगे चल के अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने उनसे शादी कर ली. उसी के बाद उन्हें हज़रत महल नाम दिया गया. 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के नाक में दम करने वालों की लिस्ट में बेग़म का नाम प्रमुखता से था. उन्होंने अपने बेटे बिरजिस कादरा को अवध का राजा घोषित किया. 

जद्दनबाई- उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जद्दनबाई एक ऐसा नाम था, जिसका ज़िक्र संगीत के कदरदानों में बेहद अदब से लिया जाता था. ये फिल्म एक्ट्रेस नर्गिस की मां और संजय दत्त की नानी थीं. गायिका, म्यूजिक कम्पोज़र, अभिनेत्री और फिल्म मेकर जैसे अलग-अलग मुहाज़ पर इन्होंने खुद को साबित किया. वो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की पहली महिला संगीत निर्देशक थीं.  ग़ज़ल गायिकी के लिए उन्हे याद किया जाता है.

ज़ोहरा बाई- ज़ोहरा बाई को भारतीय शास्त्रीय संगीत के पिलर्स में से एक माना जाता है. उनके संगीत का प्रभाव उनके बाद के फनकारों पर साफ़ देखा जा सकता है. तवायफों की गौरवशाली विरासत में उनका नाम गौहर जान के साथ बड़े ही आदर से लिया जाता है. अपनी 'मर्दाना' आवाज़ के लिए मशहूर ज़ोहराबाई आगरा घराने से ताल्लुक रखती थीं. उन्हें उस्ताद शेर खान जैसे संगीतज्ञों से तालीम हासिल हुई थी. वह ठुमरी या ग़ज़ल के लिए याद की जाती हैं

रसूलन बाई - बनारस घराने की इस महान फनकार का जन्म 1902 में एक बेहद गरीब घराने में हुआ था. अगर उनके पास कोई दौलत थी, तो वो थी अपनी मां से हासिल संगीत की विरासत. पांच साल की उम्र से ही उन्हें उस्ताद शमू ख़ान से तालीम हासिल होनी शुरू हुई, जिसकी वजह से उनके गायन की नींव बेहद मजबूत हुई. बाद में उन्हें सारंगी वादक आशिक खान और उस्ताद नज्जू ख़ान के पास भेजा गया. रसूलन बाई वो कलाकार हैं, जिनका ज़िक्र उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान बेहद आदर से किया करते थे. उन्हें ईश्वरीय आवाज़ कहा करते थे.  रसूलन बाई ठुमरी गाती थी

गौहर जान- ये आर्मेनियाई दंपति की संतान थीं और गौहर जान का असली नाम एंजलिना योवर्ड था.  भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी थी. राग जोगिया में ‘ख़याल’ वह गाया करती थीं और बनारस - कलकत्ते की मशहूर तवायफ थी वह.रिकॉर्डिंग इंडस्ट्री के भारत में प्रवेश से गौहर जान बहुत जल्द घर-घर सुनी जाने लगीं.गौहर की मां खुद भी बहुत उम्दा नृत्यांगना थीं. वो ध्रुपद, ख़याल, ठुमरी और बंगाली कीर्तन में पारंगत हो गईं. उनकी शोहरत फैलने लगी. 

उमराव जान- अवध की शान कही जाने वाली उमराव जान का असली नाम अमरीन था. ये वो थीं जो अपने पैसे से क्रांतिकारियों की मदद करती थीं. लखनऊ में ही उन्होंने संगीत और नृत्य की शिक्षा दीक्षा ली और उसके बाद बेहतरीन फनकारा के रूप में लोग आज भी याद करते हैं. हालांकि वह अंतिम दिनों में एकदम अकेली हो गई थीं और उनकी मौत बनारस में हुई थी. आज भी उनकी कब्रगाह पर लोग फूल जरूर चढ़ाते हैं.